गुरुवार, 12 जनवरी 2012

फेसबुक पर राजभाषा विभाग की उपस्थिति

अब राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार ने फेसबुक पर अपनी उपस्थिति दर्ज की है। हम राजभाषा विभाग के इस कदम का हार्दिक स्वागत करते है। फेसबुक संवाद का सशक्त माध्यम है। इसके द्वारा युवकों को आकर्षित करके उनके विचारों को समझने में मदद मिलेगी। राजभाषा विभाग ने तकनीकी क्षेत्र में अपना कदम रखा है। अनेक हिंदी ब्लॉगर, लेखक अब फेसबुक पर राजभाषा विभाग के पृष्ठ पर अपने विचार,प्रतिक्रियाएँ दे सकते है।
राजभाषा विभाग के तकनीकी अधिकारी श्री. केवल कृष्णन प्रशंसा के पात्र है। उन्होंने लिखा है कि -

      " राजभाषा के प्रचार-प्रसार हेतु फेसबुक की क्षमता का उपयोग करके करोड़ों  लोगों से जुड़कर, उन्हें राजभाषा के प्रचार-प्रसार में जोड़ा जा सकता है जिससे उन्हेंस राजभाषा विभाग की नीतियों और कार्य-कलापों से अवगत कराकर उनका फीडबैक भी लिया जा सकता है।  भारत सरकार के सभी मंत्रालय/विभाग/
कार्यालय भी इसके माध्यय से राजभाषा विभाग संबंधी जानकारी प्राप्त  कर सकते हैं।

       फेसबुक पर राजभाषा विभाग द्वारा निम्नं गतिविधियां की जा सकती हैं :

  •  विभाग तथा विभाग के अधीनस्थ कार्यालयों की महत्वपूर्ण गतिविधियां
  • हिंदी भाषा के शिक्षण हेतु केन्द्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान
  • केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरो द्वारा अनुवाद प्रशिक्षण संबंधी टिप्स
  • आई.टी. टूल्स के प्रयोग हेतु जानकारी एवं प्रयोगकर्ताओं की समस्याओं का समाधान
  • अनुसंधान प्रभाग एवं क्षेत्रीय कार्यान्वेयन कार्यालयों द्वारा विभिन्‍न गतिविधियों जैसे नगर राजभाषा कार्यान्व्यन समितियों की बैठक आदि की सूचना उपलब्ध  करवाना
     आइए हम राजभाषा विभाग के इस नए कदम का हार्दिक स्वागत करें और सक्रिय योगदान प्रदान करें।

मंगलवार, 13 दिसंबर 2011

राजभाषा विभाग की पहल-सरल हिंदी का प्रयोग

राजभाषा विभाग,गृह मंत्रालय के सचिव श्रीमती वीणा उपाध्याय ने सरकारी कामकाज़ में सरल हिंदी का प्रयोग करने हेतु दिनांक 26 सितंबर,2011 में सभी मंत्रालयों एवं विभागों को निर्देश जारी किए है। इस आदेश की चर्चा अनेक समाचार पत्रों में पढने में आयी है।
दैनिक भास्कर ने लिखा है
        आजादी के 64 साल बाद भी सरकार हिंदी को राजभाषा से राष्ट्रभाषा नहीं बना पाई है, मगर अब उसने सरकारी दफ्तरों में इस्तेमाल होने वाली हिंदी को बदलने के प्रयास अवश्य तेज कर दिए हैं। दफ्तरों में इस्तेमाल होने वाले हिंदी के कठिन शब्दों की जगह उर्दू, फारसी, सामान्य हिंदी और अंग्रेजी के शब्दों का उपयोग करने के निर्देश दिए हैं। बोलचाल में ऐसी हिंदी को ‘हिंग्लिश’ कहते हैं।

गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग की सचिव वीणा उपाध्याय ने इस सिलसिले में सभी मंत्रालयों और विभागों को दिशा-निर्देश जारी किए हैं। निर्देशों के मुताबिक, कामकाज के दौरान साहित्यिक हिंदी का उपयोग नहीं किया जाना चाहिए। किसी भी शब्द का हिंदी में उपयोग बतौर अनुवाद न हो। इससे आम लोगों को समस्या होती है। एक हद के बाद यही समस्या किसी भी व्यक्ति को मानसिक तौर पर भाषा के खिलाफ खड़ा करती है।

पत्र में कहा गया है कि जहां तक संभव हो, सरकारी कामकाज में हिंदी के प्रचलित शब्दों का उपयोग हो। और, ऐसा न होने पर अंग्रेजी के वैकल्पिक शब्दों का चयन किया जाए। सामान्य सरकारी कामकाज में बोलचाल की व्यावहारिक भाषा का इस्तेमाल होना चाहिए। कनिष्ठ अभियंता, परिमंडल, अधीक्षण अभियंता, संगणक या प्रतिभूति जैसे शब्द जो अब तक लोगों को परेशान करते थे, उनकी जगह सरकारी दफ्तरों में अब अंग्रेजी के शब्द देवनागरी में लिखने की इजाजत दी गई है। मंत्रालय के इस कदम को वक्त के लिहाज से उठाया गया कदम माना जा रहा है।
नया फरमान
गृह मंत्रालय के राजभाषा विभाग की सचिव वीणा उपाध्याय ने सभी मंत्रालयों और विभागों को जारी किए दिशा-निर्देश मंत्रालय के इस आदेश के बाद पुलिस, कोर्ट, ब्यूरो, रेलवे स्टेशन, बटन, कोट, पैंट, सिग्नल, लिफ्ट, फीस, कानून, अदालत, मुकदमा, दफ्तर, एफआईआर जैसे अंग्रेजी, फारसी और तुर्की भाषा के शब्दों का चलन जारी रहेगा।
ऐसे शब्दों से थी परेशानी
मिसिल (फाइल), प्रतिभूति (सिक्योरिटी), कुंजीपटल (कीबोर्ड) और संगणक (कंप्यूटर) आदि।

वेब दुनिया ने कहा है-
कठिन हिंदी शब्दों से आने वाली समस्याओं से पार पाने के लिए सरकार ने सेक्शन ऑफिसरों को निर्देश दिया है कि वे आसानी से समझ में आने और भाषा को प्रोत्साहन देने के लिए वैसे शब्दों की जगह ‘हिंग्लिश’ शब्दों का प्रयोग करें।

यह आदेश गृह मंत्रालय की राजभाषा इकाई ने जारी किया। इसे हाल में विभिन्न दफ्तरों में फिर से भेजा गया है। इसमें आधिकारिक तौर पर उल्लेख किया गया है कि विशुद्ध हिंदी के इस्तेमाल से आम जनता में अरुचि पैदा होती है।

परिपत्र में अनुशंसा की गई है कि आधिकारिक कामों के लिए कठिन हिंदी शब्दों की जगह देवनागरी लिपि में अंग्रेजी के वैकल्पिक शब्दों का इस्तेमाल किया जा सकता है।

गृह मंत्रालय में आधिकारिक भाषा विभाग ने उदाहरण देते हुए कहा कि ‘मिसिल’ की जगह फाइल का इस्तेमाल किया जा सकता है। ‘प्रत्याभूति’ की जगह ‘गारंटी’, ‘कुंजीपटल’ की जगह की-बोर्ड और ‘संगणक’ की जगह ‘कंप्यूटर’ का इस्तेमाल किया जा सकता है।

इसमें लोकप्रिय हिंदी शब्दों और वैकल्पिक अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल करने की भी वकालत की गई है ताकि भाषा को और आकर्षक तथा दफ्तरों और आम जनता के बीच इसे लोकप्रिय बनाया जा सके।

परिपत्र में कहा गया है कि जब भी आधिकारिक काम के दौरान अनुवाद की भाषा के तौर पर हिंदी का इस्तेमाल किया जाता है तो यह कठिन और जटिल बन जाती है। अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद की प्रक्रिया में बदलाव करने की तत्काल आवश्यकता है। शब्दश: हिंदी करने की बजाय अनुवाद में मूल पाठ का भावानुवाद होना चाहिए।

आधिकारिक पत्राचार में उर्दू, अंग्रेजी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के लोकप्रिय शब्दों के इस्तेमाल को प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। हिंदी के शुद्ध शब्द साहित्यिक उद्देश्यों के लिए होने चाहिए, जबकि काम के लिए व्यावहारिक ‘मिश्रित’ शब्दों का इस्तेमाल होना चाहिए। इसमें कहा गया है कि शुद्ध हिंदी में अनुवाद करने की बजाय देवनागरी लिपि में अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल करना ज्यादा बेहतर है। (भाषा)
 

पोस्ट कार्ड



मैं छोटा हूँ, सस्ता हूँ
आम जनता का साथी हूँ,
सुख-दुःख बाँटता हूँ
भेद मन का खोलता हूँ।

हिंदुस्तान मेरा परिवार है,
हर जाति धरम में मेरी पहचान है
जब चाहो पढ़ लो मुझे
जब चाहो भेज दो मुझे।

माता-पिता का आशीर्वाद हूँ
भाई-बहन का धागा हूँ
घर घर की कहानी हूँ
मैं नहीं आता तो वीरानी हूँ।

डाक घर मेरी सराय है
घर आपका मेरा ठिकाना है
डाकिया कहे आपका पोस्ट कार्ड आया है
आप कहे घर हमारे मेहमान आया है।

गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

अहमद नगर दूरसंचार ज़िले की गृह पत्रिका कलश

सरकारी कार्यालयों में गृह पत्रिका का प्रकाशन का मुख्य उद्देश्य कर्मचारी एवं प्रशासन के बीच सुसंवाद निर्माण करना है। गृह पत्रिका प्रकाशन का मतलब कार्यालयों में कार्यरत कर्मचारियों की प्रतिभा की अभिव्यक्ति को एक सशक्त मंच उपलब्ध करवाना भी है। इस पत्रिका में रचनाएं प्रकाशित हो जाने के कारण न जाने कितने छुपे हुए कलाकार, लेखक, कवि प्रशासन के सामने आ गए। कार्यालय के कर्मचारियों के परिवार सदस्य भी इस पत्रिका के साथ जुड़ने लगे। कार्यालय में सांस्कृतिक वातावरण निर्माण करने में गृह पत्रिका ने प्रमुख भूमिका अदा की है। आज भी हमारा लिखा हुआ कोई साहित्य छपकर आता है तो हमें अत्यंत आनंद होता है। हम अपनी रचना को प्रकाशित होकर ऐसे आनंदित हो जाते है जैसे हमारे घर में किसी नव शिशु ने जन्म लिया हो।
दूरसंचार की तकनीकी पहलुओं को हम अपनी मातृ भाषा एवं राज भाषा में पढ़ने लगे। जो तकनीक पहले कठीण लगता था वह अब आसान लगने लगा। हम कार्यालय के नियम,सुविधा और अनुशासन को अच्छी तरह से समझने लगे है। गृह पत्रिका की भाषा कोई साहित्यिक अथवा नियम पुस्तक की नहीं बल्कि हमारी बोलचाल की दैनिक भाषा होती है।
गृह पत्रिका कलश का प्रथम अंक 2 अक्तूबर 1993 को प्रकाशित हुआ । अहमद नगर दूरसंचार ज़िले के तत्कालीन दूरसंचार ज़िला प्रबंधक श्री सत्य पाल (वर्तमान मुख्य महाप्रबंधक गुजरात सर्किल, अहमदाबाद) ने अपने अध्यक्षीय प्रास्ताविक में लिखा था - अहमद नगर दूरसंचार सेवाओं की उपलब्धियाँ तथा सामान्य जानकारी से अवगत कराना तथा कर्मचारियों में छुपी प्रतिभा को उजागर करना गृह पत्रिका कलश का उद्देश्य है।
गृह पत्रिका कलश का नाम स्व. श्री ए.जी. लांडगे (टेलिफोन अधीक्षक) ने सुझाया था । इस कलश को हिंदी-मराठी रचनाओं से सुशोभित किया गया । कलश के प्रथम मुख्य संपादक मंडल अभियंता(विकास) श्री पूरनमल के साथ कार्यकारी संपादक श्री आर.एस.कुलकर्णी, सह संपादक श्री एन.पी. साब्रन तथा वि. प्र. नगरकर थे।
गृह पत्रिका कलश का मुख पृष्ठ आकर्षण बिंदु रहा क्योंकि अहमद नगर ज़िले के महत्त्वपूर्ण ऐतिहासिक प्राकृतिक स्थलों को प्रकाशित किया जाने लगा ।
मुख पृष्ठ पर अब तक संत ज्ञानेश्वर का पैस , शिरडी के साई बाबा शनि शिंगनापूर के शनि देवता, भंडारदरा धरण, निघोज के स्वयंभू कुंड, रेहकुरी का हरीण अभयारण्य, सिदेश्वर वाडी का पुरातन शिवालय मंदिर, रंधा फॉल, टाहाकारी अकोले का हेमोडपंथी प्राचीन जगदंबा माता मंदिर,
चोंडी, स्थित परम पूजनीय अहिल्या देवी होळकर का जन्मस्थान, अहमद नगर का भूईकोट किला, चाँद बीबी महल, हयूम मेमोरियल चर्च, विशाल गणपति, नेवासा का मोहिनीराज मंदिर आदि महत्त्वपूर्ण फोटो प्रकाशित हुए है।
कलश पत्रिका का निरंतर प्रकाशन तत्कालीन दूरसंचार ज़िला प्रबंधक श्री सत्य पाल, श्री ए.पी. भट, श्री जी.पी. भोकरे, महाप्रबंधक श्री एन.एन. गुप्ता, श्री जे. के. गुप्ता, श्री हेमंत जोगळेकर, श्री आर. के. चौहान तथा वर्तमान महाप्रबंधक श्री एल.एस.रोपिया जी ने सुलभ किया।
गृह पत्रिका कलश हेतु हमें डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर मराठा विद्यापीठ के डॉ. चंद्र देव कवडे, निर्मलाताई देशपांडे ( विनोबा भावे की मानस पुत्री ), हिंदी साहित्यिक श्री यश पाल जौन, अहमद नगर के सेवानिवृत्त मेजर जनरल श्री बी.एस.मलिका, पूर्व सांसद श्री रत्नाकर पांडेय, हिंदी लेखक डॉ. दामोदर खडसे, राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के महामन्त्री प्रा. अनंतराम त्रिपाठी तत्कालीन राज्यपाल अरूणाचल प्रदेश श्री माता प्रसाद, नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी के श्री सुधाकर पाण्डेय, विधान सभा सदस्य श्री राधा कृष्ण विखे पाटील, पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री श्री दिलीप गांधी,
डॉ. मनोज पटौरिया (निदेशक वैज्ञानिक एफ ), दूरसंचार विभाग के हिंदी सलाहकार श्री हरिहर लाल श्रीवास्तव, श्री राजेन्द्र पटोरिया आदि महानुभावों के प्रेरणादायक पत्र एवं प्रशंसा प्राप्त हुई है।
इस पत्रिका को गतिमान रखने में संपादक सदस्य श्री वि.प्र. नगरकर, सुभाष डाके, श्रीमती एस.सी. कुर्वे, श्री बी.डी.महानुर, वसंत दातीर, बी.जी. देशमुख, श्रीमती एस.एस. अष्टेकर, डी.भी . भोर अतिथि संपादक डॉ. शहाबुद्दीन शेख, लछमन हर्दवाणी, हेरंब कुलकर्णी आदि विद्वानों ने महत्त्वपूर्ण योगदान प्रदान किया ।
गृह मंत्रालय, राजभाषा विभाग, क्षेत्रीय कार्यान्वयन कार्यालय, मुंबई में वर्ष 1994-95 के दौरान दूरसंचार ज़िला प्रबंधक कार्यालय अहमद नगर द्वारा प्रकाशित कलश गृह पत्रिका को द्वितीय पुरस्कार से 14 नवंबर 1995 को सम्मानित किया । इसी तरह राष्ट्रीय हिंदी अकादमी रु‎पांबरा पश्चिम बंगाल में इस कार्यालय की गृह पत्रिका कलश तथा राजभाषा कार्य हेतु राष्ट्रीय राजभाषा प्रथम पुरस्कार 1997 शिलाँग में प्रदान किया । इस कार्यक्रम में तत्कालीन लोक सभा अध्यक्ष श्री पी.ए. संगमा, मेघालय के राज्यपाल श्री जेकाब एवं मुख्यमंत्री श्री मराक उपस्थित थे।
पत्रिकाएँ अहमद नगर दूरसंचार के गुणवंत एवं होनहार बच्चों के फोटो हमेशा प्रकाशित किए जा रहे है। अधिकारी एवं कर्मचारियों के साहित्य को प्रकाशित करते समय हमने उनके परिवार सदस्य द्वारा लिखित साहित्य को भी प्रकाशित किया है। दूरसंचार सेवा संबंधित आधुनिक सेवाएं एवं तकनीक की जानकारी हिंदी मराठी भाषा के माध्यम से पाठकों तक पहुँचाई जा रही है।
भारतीय दूरसंचार के 150 वें गौरवशाली वर्ष के निमित्त हमने 15 अगस्त 2003 को विशेषांक प्रकाशित किया था । इसी तरह राज भाषा सुवर्ण जंयती विशेषांक 14 सितंबर 2002 प्रकाशित किया गया इस पत्रिका में श्री वि. प्र.नगरकर, वसंत दातीर , बी.डी.महानुर, अन्सार इनामदार, बी.जी.देशमुख, सुभाष डाके, श्रीमती प्रगति पवार, रंगनाथ वाडेकर, विक्रांत कंगे, गिरीष जाधव, बी.बी. चौहान, श्रीमती एस.सी. कुर्वे , सविता धर्माधिकारी, आर. के. सोनवणे, श्री एल.एस. गावडे,श्री एम.एस.शेख, शेख सी.यू. पटेल, शहाबुद्दीन शेख, श्रीमती छाया घोटणकर, चि. अक्षय जांमगावकर, श्री डी.बी.अढाव, भूषण देशमुख, श्रीमती पी.जी.कंत्रोड, श्री व्ही.ए.इंगळे, भालचंद्र कांबळे , एस.बी. डोंगरे , डी.बी.भोर, कु. भाग्यश्री चेमटे, एस.आर.भळगट, एस.व्ही.नगरकर, प्रदीप जाधव, एच.आर.रोहोकले, आर.जी.ज्योतिक, व्ही.आर.पवार, ए.ए. चेंबूरकर आदि कर्मचारियों एवं अधिकारियों ने निरंतर अपनी रचनाएँ भेज कर कलश पत्रिका के सफल प्रकाशन में अपना बहुमूल्य योगदान प्रदान किया है।
इस पत्रिका की चर्चा अनेक समाचार पत्र एवं पत्रिकायें में प्रकाशित हुई है। हमें सुदूर प्रांतों के ( असम, उड़ीसा, तमिलनाडू, उत्तर प्रदेश आदि ) अनेक पाठकों की प्रतिक्रियाएँ प्राप्त हो रही है।
कुछ हिंदी प्रेमी हमें पत्र भेज कर कलश का वार्षिक चंदा भेजने के बारे में निवेदन करते है लेकिन यह एक गृह पत्रिका होने के कारण मुफ्त में अधिकारियों एवं कर्मचारियों को वितरित की जाती है।

मंगलवार, 22 जून 2010

संत महिपति की मराठी ग्रंथ रचनाएँ

१) श्रीभक्तविजय ५७ ९९१६ १६८४
२) श्रीकथासरामृत १२ ७२०० १६८७
३) श्रीसंतलीलामृत ३५ ५२५९ १६८९
४) श्रीभक्तलीलामृत ५१ १०७९४ १६९६
५) श्रीसंतविजय २६ (अपूर्ण) ४६२८ १६९६
६) श्रीपंढरी म्हात्म्य १२ - -
७) श्रीअनंत व्रतकथा - १८६ -
८) श्रीदत्तात्रेय जन्म - ११२ -
९) श्रीतुलसी महात्म्य ५ ७६३ -
१०) श्रीगणेशपुराण (अपूर्ण) ४ ३०४ -
११) श्रीपांडुरंग स्तोत्र - १०८ -
१२) श्रीमुक्ताभरणव्रत - १०१ -
१३) श्रीऋषीपंचमी व्रत - १४२ -
१४) अपराध निवेदन स्तोत्र - १०१ -
१५) स्फुट अभंग व पदे - - -
इन ग्रंथों में मराठी पद्य रचनाओं की संख्या चालीस हजार के करीब है।
'महाराष्ट्र कवि चरित्रकार' श्री. ज. र. आजगावकर द्वारी लिखित महिपती द्वारा रचित सुप्रसिध्द संतों का चरित्र निम्न नुसार है-
श्री नामदेव चरित्र अभंग ६२
श्री हरिपाळ चरित्र अभंग ५८
श्री कमाल चरित्र अभंग ६७
श्री नरसी मेहता चरित्र अभंग ५२
श्री राका कुंभार चरित्र अभंग ४७
श्री जगमित्र नागा चरित्र अभंग ६३
श्री माणकोजे बोधले चरित्र अभंग ६७
श्री संतोबा पवार चरित्र अभंग १०२
श्री चोखामेळा चरित्र अभंग ४७

'श्री भक्तलीलामृत' इस ग्रंथ में पदों की संख्या १०७९४ है।

शनिवार, 1 मई 2010

गुगल लिपि परिवर्तक

भारत के गुगल लैब ने किसी वेब पेज को अपनी भाषा की लिपि में पढ़ने की सुविधा प्रदान की है। अब तमिल वेब पेज भी अंग्रेज़ी लिपि (रोमन लिपि)  में परिवर्तित करके हम पढ़ सकते है। यहां किसी पाठ का अनुवाद नहीं बल्कि लिप्यंतरण किया जाता है। यह प्रक्रिया स्वराधारित है। इस परिवर्तक की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धि यह है कि अब हम किसी भारतीय भाषा में उपलब्ध सामग्री चाहे वह युनिकोड रहित हो उसे युनिकोड में परिवर्तित कर सकते है। इस सुविधा के कारण हम लिप ऑफ़िस, श्री लिपि,शुशा,शिवाजी,कृति देव, आकृति आदि फ़ौंट में किया हुआ काम युनिकोड में परिवर्तित कर सकते है। युनिकोड परिवर्तन करना बहुत कष्टसाध्य काम था।  याद रखे कि आपके कंप्यूटर में युनिकोड सक्रिय किया गया है। किसी वेबसाइट को देखने के लिए टैक्स्ट एरिया में यूआरएल टाइप करके आपकी पसंदीदा लिपि को चुन कर उसे परिवर्तित करने के लिए बटन दबाइए।
इस परिवर्तक में निम्नलिखित लिपि उपलब्ध है-
·        बाँग्ला
·        ग्रीक
·        अंग्रेज़ी
·        फ़ारसी
·        गुजराती
·        देवनागरी (हिंदी,मराठी,संस्कृत,नेपाली )
·        कन्नड़
·        मलायम
·        पंजाबी
·        रूसी
·        संस्कृत
·        सर्बियन
·        तमिल
·        तेलुगु
·        उर्दू
 इसमें सभी लोकप्रिय साइट के फ़ौंट युनिकोड में परिवर्तित होकर दिखाए जाएँगे। अगर आपकी कोई पसंदीदा साइट के फ़ौंट युनिकोड में परिवर्तित होने में मुश्किल हो रही है तो आप संबधित सामग्री उस फाँट के साथ गुगल लैब को निम्नलिखित मेल पते पर भेज दें –
 indialabs+scriptconv@google.com
सभी साइट का परिवर्तन कभी कभी संभव नहीं हो पाता है। जिन पृष्ठों में एचटीएमएल सपोर्ट है वही परिवर्तन संभव है। जिन साइट पर कुकिज सक्रिय करना आवश्यक होता है ऐसे साइट का परिवर्तन संभव नहीं है। अगर साइट में काम्प्लैक्स जावा का प्रयोग किया गया है तो वहा भी परिवर्तन नहीं किया जा सकता।
 
कभी कभी परिवर्तन करने के बाद भी मूल लिपि में पृष्ठ दिखाया देते है क्योंकि प्रतिमाओं को परिवर्तित नहीं किया जाता है। इसी तरह सामग्री मूल रूप में न होकर जावा स्क्रिप्ट द्वारा भरी हो तो उसे परिवर्तित नहीं किया जा सकता
गुगल लिपि परिवर्तक स्वयं उन पृष्ठों को पुनः एचटीएमएल में लिख कर उसे आपकी लिपि में परिवर्तित करके प्रस्तुत करता है। आप निश्चिन्त होकर साइट पर विचरण कर सकते हो।
आप अगर चाहे तो उपरि बार पर किसी साइट को मूल पृष्ठ पर जाकर बगैर परिवर्तन करके देख सकते है।
वेब पेज के किसी टैक्स्ट को आप टैक्स्ट एरिया में चिपका कर देख भी सकते है जिससे पूरे वेब पृष्ठ को परिवर्तित करने की आवश्यकता नहीं होगी।

अगर आप परिवर्तन आपकी पसंदीदा लिपि में नहीं कर पा रहे हो तो गुगल लैब को ज़रुर सुचित करें।

indialabs+scriptconv@google.com

कृपया आप स्वयम् अजमाकर देखें और गुगल लैब से संपर्क करें ताकि यह योजना सफल बनें।
http://scriptconv.googlelabs.com/
 
 

सोमवार, 26 अप्रैल 2010

राष्ट्र लिपि के विकास में नागरी लिपि का योगदान

आचार्य विनोबा भावे जी ने देवनागरी लिपि के बारे में कहा है कि “ हिन्दुस्तान की एकता के लिये हिन्दी भाषा जितना काम देगी, उससे बहुत अधिक काम देवनागरी लिपि दे सकती है।“
देवनागरी एक लिपि है जिसमें अनेक भारतीय भाषाएँ तथा कुछ विदेशी भाषाएं लिखीं जाती हैं। संस्कृत, पालि, हिन्दी, मराठी, कोंकणी, सिन्धी, कश्मीरी, नेपाली, तामाङ भाषा, गढ़वाली, बोडो, अंगिका, मगही, भोजपुरी, मैथिली, संथाली आदि भाषाएँ देवनागरी में लिखी जाती हैं। इसके अतिरिक्त कुछ स्थितियों में सिंधि, गुजराती, पंजाबी, बिष्णुपुरिया मणिपुरी, रोमानी और उर्दू भाषाएं भी देवनागरी में लिखी जाती हैं।

अधिकतर भाषाओं की तरह देवनागरी भी बायें से दायें लिखी जाती है। प्रत्येक शब्द के ऊपर एक रेखा खिंची होती है (कुछ वर्णों के ऊपर रेखा नहीं होती है)इसे शिरोरेखा कहते हैं। इसका विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ है। यह एक ध्वन्यात्मक लिपि है जो प्रचलित लिपियों (रोमन, अरबी, चीनी आदि) में सबसे अधिक वैज्ञानिक है। इससे वैज्ञानिक और व्यापक लिपि शायद केवल आइपीए लिपि है। भारत की कई लिपियाँ देवनागरी से बहुत अधिक मिलती-जुलती हैं, जैसे- बांग्ला, गुजराती, गुरुमुखी आदि। कम्प्यूटर प्रोग्रामों की सहायता से भारतीय लिपियों को परस्पर परिवर्तन बहुत आसान हो गया है।सी-डैक पुणे के अनुसंधान के अनुसार देवनागरी लिपि का मूल आधार ब्राह्मी लिपि है। आजकल कंप्यूटर पर इनस्क्रिप्ट की बोर्ड सबसे लोकप्रिय की बोर्ड है जिसका आधार भी ब्राह्मी लिपि है। सभी भारतीय भाषाओं का जन्म ब्राह्मी लिपि से हुआ है। इसलिए इनस्क्रिप्ट की बोर्ड की सहायता से किसी भी भारतीय भाषा को एक ही की बोर्ड द्वारा टंकित किया जा सकता है। सभी भारतीय भाषाएँ स्वराधारित है।
भारतीय भाषाओं के किसी भी शब्द या ध्वनि को देवनागरी लिपि में ज्यों का त्यों लिखा जा सकता है और फिर लिखे पाठ को लगभग 'हू-ब-हू' उच्चारण किया जा सकता है, जो कि रोमन लिपि और अन्य कई लिपियों में सम्भव नहीं है।

इसमें कुल ५२ अक्षर हैं, जिसमें १४ स्वर और ३८ व्यंजन हैं। अक्षरों की क्रम व्यवस्था (विन्यास) भी बहुत ही वैज्ञानिक है। स्वर-व्यंजन, कोमल-कठोर, अल्पप्राण-महाप्राण, अनुनासिक्य-अन्तस्थ-उष्म इत्यादि वर्गीकरण भी वैज्ञानिक हैं। एक मत के अनुसार देवनगर (काशी) मे प्रचलन के कारण इसका नाम देवनागरी पड़ा।

भारत तथा एशिया की अनेक लिपियों के संकेत देवनागरी से अलग हैं (उर्दू को छोडकर), पर उच्चारण व वर्ण-क्रम आदि देवनागरी के ही समान हैं -- क्योंकि वो सभी ब्राह्मी लिपि से उत्पन्न हुई हैं। इसलिए इन लिपियों को परस्पर आसानी से लिप्यन्तरित किया जा सकता है। देवनागरी लेखन की दृष्टि से सरल, सौन्दर्य की दृष्टि से सुन्दर और वाचन की दृष्टि से सुपाठ्य है।
देवनागरी लिपि को सूचना प्रौद्योगिकी में स्थापित करने के लिए भारत सरकार ने देवनागरी लिपि को तकनीकी रुप में विश्वस्तरिय बनाया है। अब देवनागरी के अक्षर यूनिकोड में परिवर्तित
किए गए है। सूचना विनिमय के मानक के रूप में यूनिकोड की स्वीकृति संपूर्ण विश्व में बढ़ती जा रही है । सूचना प्रौद्योगिकी क्षेत्र की अधिकांश कंपनियों ने इसके पक्ष में अपने सहयोग की घोषणा कर दी है । भारतीय भाषाओं के लिए यूनिकोड 'आइस्की 91' का प्रयोग न करके 'इस्की 88' का प्रयोग करता है जो अद्यतन सरकारी मानक है । यह आवश्यक समझा गया कि भारत सरकार, भारतीय भाषाओं के लिए कोड में आवश्यक संशोधन के लिए यूनिकोड कंसोर्टियम के समक्ष अपना पक्ष रखे । इस उद्देश्य से सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय यूनिकोड कंसोर्टियम का मताधिकार के साथ पूर्ण सदस्य बन गया है ।

16 बिट (2 बाइट) यूनिकोड - यूनिकोड मानक कंप्यूटर संसाधन के उद्देश्य से पाठ निरूपण के लिए एक सार्वदेशिक वर्ण कोडांतरण मानक है । यूनिकोड मानक विश्व कीलिखित भाषाओं के लिए प्रयुक्त सभी वर्णों के कोडांतरण की क्षमता रखता है । यूनिकोड मानक वर्ण तथा उसके प्रयोग के संबंध में सूचना प्रदान करता है । बहुभाषी पाठों से संबंध रखने वाले व्यापारिक लोगों, भाषाविदों, शोधकर्ताओं, विज्ञानियों, गणितज्ञों तथा तकनीकज्ञों जैसे कंप्यूटर प्रयोक्ताओं के लिए यूनिकोड मानक बहुत ही उपयोगी है । यूनिकोड 16 बिट कोडांतरण का उपयोग करता है जिसमें 65000 वर्णों (65536) से भी अधिक के लिए कोड बिंदु उपलब्ध कराता है । यूनिकोड मानक प्रत्येक वर्ण को एक निश्चत संख्यात्मक मूल्य तथा नाम निर्धारित करता है ।
यूनिकोड
यूनिकोड, प्रत्येक अक्षर के लिए एक विशेष संख्या प्रदान करता है, चाहे कोई भी कम्प्यूटर प्लेटफॉर्म, प्रोग्राम अथवा कोई भी भाषा हो। यूनिकोड स्टैंडर्ड को एपल, एच.पी., आई.बी.एम., जस्ट सिस्टम, माइक्रोसॉफ्ट, ऑरेकल, सैप, सन, साईबेस, यूनिसिस जैसी उद्योग की प्रमुख कम्पनियों और कई अन्य ने अपनाया है। यूनिकोड की आवश्यकता आधुनिक मानदंडों, जैसे एक्स.एम.एल, जावा, एकमा स्क्रिप्ट (जावास्क्रिप्ट), एल.डी.ए.पी., कोर्बा 3.0, डब्ल्यू.एम.एल के लिए होती है और यह आई.एस.ओ/आई.ई.सी. 10646 को लागू करने का अधिकारिक तरीका है। यह कई संचालन प्रणालियों, सभी आधुनिक ब्राउजरों और कई अन्य उत्पादों में होता है। यूनिकोड स्टैंडर्ड की उत्पति और इसके सहायक उपकरणों की उपलब्धता, हाल ही के अति महत्वपूर्ण विश्वव्यापी सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी रुझानों में से हैं।
यूनिकोड को ग्राहक-सर्वर अथवा बहु-आयामी उपकरणों और वेबसाइटों में शामिल करने से, परंपरागत उपकरणों के प्रयोग की अपेक्षा खर्च में अत्यधिक बचत होती है। यूनिकोड से एक ऐसा अकेला सॉफ्टवेयर उत्पाद अथवा अकेला वेबसाइट मिल जाता है, जिसे री-इंजीनियरिंग के बिना विभिन्न प्लेटफॉर्मों, भाषाओं और देशों में उपयोग किया जा सकता है। इससे आँकड़ों को बिना किसी बाधा के विभिन्न प्रणालियों से होकर ले जाया जा सकता है।
यूनिकोड क्या है?
यूनिकोड प्रत्येक अक्षर के लिए एक विशेष नम्बर प्रदान करता है,
• चाहे कोई भी प्लैटफॉर्म हो,
• चाहे कोई भी प्रोग्राम हो,
• चाहे कोई भी भाषा हो।
कम्प्यूटर, मूल रूप से, नंबरों से सम्बंध रखते हैं। ये प्रत्येक अक्षर और वर्ण के लिए एक नंबर निर्धारित करके अक्षर और वर्ण संग्रहित करते हैं। यूनिकोड का आविष्कार होने से पहले, ऐसे नंबर देने के लिए सैंकडों विभिन्न संकेत लिपि प्रणालियां थीं। किसी एक संकेत लिपि में पर्याप्त अक्षर नहीं हो सकते हैं : उदाहरण के लिए, यूरोपीय संघ को अकेले ही, अपनी सभी भाषाओं को कवर करने के लिए अनेक विभिन्न संकेत लिपियों की आवश्यकता होती है। अंग्रेजी जैसी भाषा के लिए भी, सभी अक्षरों, विरामचिन्हों और सामान्य प्रयोग के तकनीकी प्रतीकों हेतु एक ही संकेत लिपि पर्याप्त नहीं थी।
ये संकेत लिपि प्रणालियां परस्पर विरोधी भी हैं। इसीलिए, दो संकेत लिपियां दो विभिन्न अक्षरों के लिए, एक ही नंबर प्रयोग कर सकती हैं, अथवा समान अक्षर के लिए विभिन्न नम्बरों का प्रयोग कर सकती हैं। किसी भी कम्प्यूटर (विशेष रूप से सर्वर) को विभिन्न संकेत लिपियां संभालनी पड़ती है; फिर भी जब दो विभिन्न संकेत लिपियों अथवा प्लेटफॉर्मों के बीच डाटा भेजा जाता है तो उस डाटा के हमेशा खराब होने का जोखिम रहता है।
यूनिकोड से यह सब कुछ बदल रहा है!

यूनिकोड कन्सॉर्शियम के बारे में यूनिकोड कन्सॉर्शियम, एक लाभ न कमाने वाला एक संगठन है जिसकी स्थापना यूनिकोड स्टैंडर्ड, जो आधुनिक सॉफ्टवेयर उत्पादों और मानकों में पाठ की प्रस्तुति को निर्दिष्ट करता है, के विकास, विस्तार और इसके प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए की गई थी। इस कन्सॉर्शियम के सदस्यों में, कम्प्यूटर और सूचना उद्योग में विभिन्न निगम और संगठन शामिल हैं। इस कन्सॉर्शियम का वित्तपोषण पूर्णतः सदस्यों के शुल्क से किया जाता है। यूनिकोड कन्सॉर्शियम में सदस्यता, विश्व में कहीं भी स्थित उन संगठनों और व्यक्तियों के लिए खुली है जो यूनिकोड का समर्थन करते हैं और जो इसके विस्तार और कार्यान्वयन में सहायता करना चाहते हैं।

यूनिकोड कन्सॉर्शियम के अनुसार इण्डिक यूनिकोड यूनिकोड के भारतीय लिपियों से सम्बंधित सॅक्शन को कहा जाता है। यूनिकोड के नवीनतम संस्करण ५.१.० में विविध भारतीय लिपियों को मानकीकृत किया गया है जिनमें देवनागरी भी शामिल है।
यूनिकोड ५.१.० में निम्नलिखित भारतीय लिपियों को कूटबद्ध किया गया है:
• देवनागरी
• बंगाली लिपि
• गुजराती लिपि
• गुरुमुखी
• कन्नड़ लिपि
• लिम्बू लिपि (enLimbu script)
• मलयालम लिपि
• उड़िया लिपि
• सिंहल लिपि
• स्यलोटी नागरी (enSyloti Nagri)
• तमिल लिपि
• तेलुगु लिपि
यूनिकोड कॉन्सोर्टियम द्वारा अब तक निर्धारित देवनागरी यूनिकोड ५.१.० में कुल १०९ वर्णों/चिह्नों का मानकीकरण किया गया है अभी देवनागरी के बहुत से वर्ण जिनमें शुद्ध व्यंजन (हलन्त व्यंजन - आधे अक्षर) तथा कई वैदिक ध्वनि चिह्न एवं अन्य चिह्न यथा स्वस्तिक आदि, यूनिकोड में शामिल नहीं हैं। शुद्द व्यंजनों के यूनिकोडित न होने के कारण वर्तमान में उन्हें सामान्य व्यंजन के साथ अलग से हलन्त लगाकर प्रकट किया जाता है जिससे कि टैक्स्ट का साइज बढ़ने के अतिरिक्त कम्प्यूटिंग सम्बंधी कई समस्याएँ आती हैं।

यूनिकोड 16 बिट कोडिंग का प्रयोग करते हुए 65000 से अधिक वर्णों (65536) के लिए कोड-बिंदु निश्चत करता है । यूनिकोड मानक प्रत्येक वर्ण को एक विशिष्ट संख्यात्मक मूल्य तथा नाम प्रदान करता है । यूनिकोड मानक विश्व की सभी लिखित भाषाओं में प्रयुक्त सभी वर्णों की कोडिंग के लिए क्षमता प्रदान करता है । 'इस्की' 8बिट कोड है जो 'एकी' के 7बिट कोड का विस्तृत रूप है जिसके अनुसार ब्राह्मी लिपि से उद्भूत 10 भारतीय लिपियों के लिए मूलभूत वर्ण सम्मिलित हैं । भारत में 15 मान्यता प्राप्त भाषाएँ हैं । फारसी-अरबी लिपियों के अतिरिक्त, भारतीय भाषाओं के लिए प्रयुक्त अन्य सभी 10 लिपियाँ प्राचीन ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई हैं तथा इसकी ध्वन्यात्मक संरचना में समानता पाई जाती है जिससे समान वर्ण सैट संभव हो सकता । 'आज इस्की' कोड सारणी ब्राह्मी आधारित भारतीय लिपियों के लिए आवश्यक एक प्रकार का सुपर सैट है । सुविधा के लिए मान्यता प्राप्त देवनागरी लिपि के वर्णों को मानक में प्रयोग किया गया है ।


बहुभाषी साफ़्टवेयर के विकास के लिए यूनीकोड मानकों का उद्योग जगत द्वारा व्यापक प्रयोग किया जा रहा है। भारतीय लिपियों के लिये यूनीकोड मानक ISCII-1988 पर आधारित हैं। सूचना आदान-प्रदान के लिये वर्तमान मानक ISCII - IS13194:1991(Indian Script Code for Information Interchange- IS13194:1991) है। भारतीय लिपियों की विशिष्ताओं के पर्याप्त निरूपण के लिए यूनीकोड मानकों में कुछ रूपांतरण शामिल किए जाने जरूरी हैं। सूचना प्रौद्योगिकी विभाग, संचार एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय यूनीकोड कंसार्टियम का मताधिकार सदस्य है। सूचना प्रौद्योगिकी विभाग ने संबंधित राज्य सरकारों, भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग और भाषाविदों के परामर्श से वर्तमान यूनीकोड मानकों में प्रस्तावित परिवर्तनों को अंतिम रूप दिया गया है। इन्हें TDIL समाचार पत्रिका विश्वभारत@tdil के अंक 4 (देवनागरी आधारित भाषाएं संस्कृत, हिन्दी, मराठी, नेपाली, कोंकणी, सिन्धी), अंक 5 (गुजराती, मलयालम तेलगू, गुरूमुखी, उड़िया), अंक 6 (बंगला, मनीपुरी और असमी), अंक 7 (तमिल, कन्नड़, उर्दू, सिन्धी, कश्मीरी) में प्रकाशित किया गया था। प्रस्तावित परिवर्तनों को यूनीकोड कंसार्टियम में प्रस्तुत किया गया था। यूनीकोड तकनीकी समिति ने प्रस्तावित परिवर्तनों में से कुछ परिवर्तन स्वीकार कर लिये हैं एवं अद्यतन यूनीकोड मानकों में इनका समावेश किया जा चुका है ।


भारतीय मानक ब्यूरो ने इस्की (सूचना विनिमय के लिए भारतीय मानक कोड) नाम से एक मानक निर्मित किया है जिसे 7 या 8 बिट वर्णों का प्रयोग करते हुए सभी कंप्यूटरों तथा संचार माध्यमों में प्रयोग किया जा सकता है । 8 बिट परिवेश में निचले 128 वर्ण वही हैं जो सूचना विनिमय के लिए IS10315:1982 (ISO 646 IRV)7-बिट वर्ण सैट द्वारा परिभाषित हैं, जिन्हें एस्की वर्ण सैट के रूप में भी जाना जाता है । ऊपर के 128 वर्ण सैट प्राचीन ब्राह्मी लिपि पर आधारित भारतीय लिपियों की आवश्यकता की पूर्ति करते हैं ।

7 -बिट परिवेश में, नियंत्रक कोड एस.आई. को आस्की कोड के आह्वान के लिए प्रयोग किया जा सकता है तथा नियंत्रक कोड एस.ओ. को एस्की कोड सैट के पुनर्चयन के लिए प्रयोग किया जा सकता है । भारत में 15 मान्यता प्राप्त भाषाएँ हैं । फारसी-अरबी लिपियों के अतिरिक्त, भारतीय भाषाओं के लिए प्रयुक्त अन्य 10 लिपियाँ प्राचीन ब्राह्मी लिपि से उद्भूत हैं और इस्की कोड के अतिरिक्त वर्णों का प्रयोग किया जा सकता है । इस्की कोड सारणी ब्राह्मी आधारित भारतीय लिपियों में आवश्यक सभी वर्णों का एक सुपर सैट है । सुविधा के लिए, मान्यता प्राप्त देवनागरी लिपि के वर्णों को मानक में प्रयुक्त किया गया है । भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा जारी मानक संख्या IS1319 :1991 सूचना विनिमय के लिए नवीनतम भारतीय मानक है । इसे भारतीय भाषाओं में सूचना प्रौद्योगिकी उत्पादों के विकास के लिए व्यापक रूप से प्रयोग किया जा रहा है ।

लिपि वर्ण सैट यह प्रमुख वर्ण सैट होता है जिसमें बहुधा प्रयुक्त अधिकांश भाषाएं वर्ण, चिह्न, संख्याएँ आदि सम्मिलित होती हैं । कुछ अपवादों को छोड़कर चिह्नों का यह सैट सभी 'इस्फोक' वर्ण सैट में समान होगा । मैचिंग अंग्रेजी वर्ण सैट नीचे के आधे भाग में 'एस्की' वर्णों से युक्त मैचिंग अंग्रेजी फोंट के लिए सहयोगी वर्ण सैट होते हैं तथा उपर के आधे भाग में रोमन लिप्याँतरण के लिए बलाघात वर्ण होते हैं । अनुपूरक वर्ण सैट अनुपूरक वर्ण सैट मूलभूत लिपि वर्णों के सेट का एक विस्तृत सेट है जिसमें ऐसे संयुक्ताक्षर तथा चिह्न सम्मिलित होते हैं जिनका प्रयोग सामान्यतया नहीं होता ।
देवनागरी से अन्य लिपियों में रूपान्तरण
• ITRANS (iTrans) निरूपण , देवनागरी को लैटिन (रोमन) में परिवर्तित करने का आधुनिकतम और अक्षत (lossless) तरीका है। ( Online Interface to iTrans )
• आजकल अनेक कम्प्यूटर प्रोग्राम उपलब्ध हैं जिनकी सहायता से देवनागरी में लिखे पाठ को किसी भी भारतीय लिपि में बदला जा सकता है। ( भोमियो क्रास_लिटरेशन )
• कुछ ऐसे भी कम्प्यूटर प्रोग्राम हैं जिनकी सहायता से देवनागरी में लिखे पाठ को लैटिन, अरबी, चीनी, क्रिलिक, आईपीए (IPA) आदि में बदला जा सकता है। (ICU Transform Demo)
• यूनिकोड के पदार्पण के बाद देवनागरी का रोमनीकरण (romanization) अब अनावश्यक होता जा रहा है। क्योंकि धीरे-धीरे कम्प्यूटर पर देवनागरी को (और अन्य लिपियों को भी) पूर्ण समर्थन मिलने लगा है।



देवनागरी लिपि को कंप्यूटर पर टंकित करने के लिए ३ विकल्प है।
तीन कुंजीपटल विन्यास हैं -

1. रोमनीकृत विन्यास :रोमनीकृत विन्यासों में, हिंदी पाठ के टंकण में अंग्रेजी ध्वन्यात्मक मैपिंग का प्रयोग किया है । उदाहरण के लिए 'राम' टंकित करने के लिए raamaa (या rAmA) का प्रयोग किया जा सकता है ।

2.टाइपराइटर विन्यास : यह विन्यास हिंदी टाइपराइटर विन्यास के समान है तथा यह विन्यास हिंदी टंककों तथा हिंदी टाइपराइटर विन्यास तथा कुंजीक्रम चार्ट के जानकार लोगों के लिए उपयोगी है ।

3. इलेक्ट्रॉनिकी विभाग ध्वन्यात्मक : यह विन्यास इलेक्ट्रॉनिकी विभाग, भारत सरकार के द्वारा मानकीकृत किया गया है । इस विन्यास का लाभ यह है कि यह सभी भारतीय भाषाओं के लिए समान है । उदाहरण के लिए 'k' कुंजी का प्रयोग सभी भारतीय भाषाओं में 'क' वर्ण के कुंजीयन के लिए किया जाता है । कुंजीपटल विन्यास तथा कुंजीक्रम चार्ट का प्रयोग सही कुंजी संयोजकों के लिए किया जाता है ।

भारतीय भाषाओं में टाइप करने की सुविधा वाले माइक्रोसॉफ़्ट ऑफ़िस सुइट 2003 के आगमन से उस हर भारतीय भाषा में आप टाइप कर सकते हैं जिसे ऑफ़िस 2003 में समर्थन प्राप्त है। फिलहाल जिन भारतीय भाषाओं में आप ऑफ़िस 2003 में काम कर सकते हैं वे हैं- गुजराती, हिंदी, कन्नड, मलयालम, तमिल और बांग्ला। किसी भी भारतीय लिपि की वर्णॅमाला के जटिल अक्षरों और चिह्नों को आप ऑफ़िस 2003 में इंडिक आई एम ई या इनपुट मेथड एडिटर (कह लीजिए भाषा संपादक) की मदद से आप टाइप कर सकते हैं। भाषा संपादक या आई एम ई एक प्रोग्राम या ऑपरेटिंग सिस्टम का हिस्सा है जो कंप्यूटर इस्तेमाल करने वालों को मानक पश्चिमी की बोर्ड के जरिए जटिल वर्णॅ और चिह्नों (जैसे कि जापानी, तिब्बती, कोरियाई और भारतीय वर्णमालाओं) को टाइप करने की सुविधा देता है। अगर आप माइक्रोसॉफ़्ट ऑफ़िस के किसी प्रोग्राम में भारतीय भाषाओं, जैसे कि हिंदी, कन्नड, मलयालम, तमिल, गुजराती या बांग्ला में टाइप करना चाहते हैं तो आपको आई एम ई की ज़रूरत होगी। यह आई एम ई या आपके लिए माइक्रोसॉफ़्ट ऑफ़िस की सी डी में या माइक्रोसॉफ़्ट भाषाइंडिया वेबसाइट के Downloads लिंक पर उपलब्ध है। भारतीय लोगों के लिए हिंदी का अत्यधिक महत्व है। देश भर में 50 करोड़ से अधिक हिंदी भाषियों के होते हुए हिंदी वास्तव में प्रशासन और बहुसंख्यकों की भाषा है। कंप्यूटर पर माइक्रोसॉफ़्ट ऑफ़िस आधारित कार्य हिंदी में करने के लिए एक सरल, 5 चरणों की प्रक्रिया की आवश्यकता होती है।
1. आई एम ई में कार्य करने की संभावना के लिए कंप्यूटर में हिंदी आई एम ई स्थापित करना आवश्यक है। इसे bhashaindia.com के मुख्पृष्ट से डाउनलोड किया जा सकता है।
 अगर कंप्यूटर पर Windows 2000 स्थापित है और हिंदी के लिए सपोर्ट भी सक्रिय है तो उपभोक्ता कंट्रोल पैनल पर जा कर रीजनल ऑप्शन पर जाएं, यहां पर "सेटिंग फॉर द सिस्टम" में " इंडिक बॉक्स" को सेलेक्ट करें। इसके बाद Windows 2000 की सी डी कंप्यूटर के सी डी रॉम ड्राइव में लगाएं और प्रोग्राम स्थापित करने के लिए निर्देश पूरे करें।
 अगर कंप्यूटर में Windows XP स्थापित है तो कंट्रोल पैनल पर जा कर "रीजनल एंड लैंगुएजेस" ऑप्शन पर जाएं। यहां आपको तीन विकल्प मिलेंगे; रीजनल ऑप्शन, लैंगुएजेस और एडवांस्ड। यहां पर एक बॉक्स होगा " जटिल लिपियों और बाएं से दाएं भाषाओं के लिए ( थाई भाषा समेत) फ़ाइल स्थापित करें। इस बॉक्स को सेलेक्ट करें और फिर "अप्लाई" बटन पर क्लिक करें।
2. हिंदी आई एम ई की "सेट अप" फ़ाइल चलाएं (रन करें) और कंप्यूटर पुन: आरंभ करें।
3. अब अगला कदम होगा कंप्यूटर द्वारा की-बोर्ड ले-आउट पहचानने की व्यवस्था करने का। इसके लिए भाषा में परिवर्तन ज़रूरी होगा।
 अगर कंप्यूटर पर Windows 2002 स्थापित है तो कंट्रोल पैनल पर जाएं, फिर "टेक्स्ट सर्विस" खंड में। इसमें "इंस्टाल्ड सर्विस" खंड में एक ऑप्शन होगा HI का। इसमें दिखाई देने वाला की- बोर्ड सेलेक्ट करिए और "add" बटन क्लिक करिए। इसके बाद Input Language खंड में हिंदी का विकल्प चुनिए और Keyboard Layout / IME बॉक्स को सेलेक्ट करिए। अब जो विकल्प आप्को उपलब्ध नज़र आएं उनमें से इंडिक आई एम ई विकल्प सेलेक्ट कर लीजिए।
 अगर कंप्यूटर में Windows XP स्थापित है तो कंट्रोल पैनल पर जा कर "रीजनल एंड लैंगुएजेस" ऑप्शन बटन पर जाएं। यहां उपलब्ध तीन विकल्पों में से लैंगुएजेस ऑप्शन चुनिए। फिर "Text services and input languages" खंड में "Details…" पर क्लिक करिए। क्लिक करने पर हिंदी को इनपुट भाषा के रूप में चुनिए और की बोर्ड के रूप में ट्रेडीशनल हिंदी को चुनिए। इसके आगे Windows 2000 में स्थापना के कदम वैसे ही रहेंगे और ऑप्शन में इंडिक आई एम ई 1 को चुन लीजिए।
4. प्रोग्राम की इस स्थापना पूरी हो जाए फिर ऑफ़िस का कोई भी कार्यक्रम शुरू करिए, नोटपैड और वर्डपैड सहित। Windows के दाईं ओर, नीचे की तरफ़ आपको विभिन्न कार्यक्रमों के चिह्न दिखाई देंगे; उसी में आपको भाषा संकेतक भी दिखाई देगा। इसे क्लिक करिए और फिर जो छोटा मेन्यू नज़र आएगा उसमें " इंडिक आई एम ई" को सेलेक्ट करिए।
5. अब आपका कंप्यूटर हिंदी में टाइप करने के लिए तैयार है।
हिंदी के लिए इंडिक आई एम ई 1 में छ्ह प्रकार के की-बोर्ड आते हैं।
1. हिंदी ट्रांसलिटेरशन (हू-ब-हू लेखन) :
यह फ़ोनेटिक टाइपिंग पर आधारित होता है। यानी आप मानक अंग्रेजी की-बोर्ड पर रोमन लिपि में शब्द टाइप करेंगे तो वह इस्तेमाल किए गए अक्षरों के मुताबिक हिंदी अक्षर टाइप करेगा। उदाहरण के लिए आप को " क" टाइप करना है तो आप अंग्रेज़ी का " के" अक्षर दबाएं और वह हिंदी का "क" अक्षर बन कर टाइप होगा। यह फ़ोनेटिक के सिद्धांत पर कार्य करता है और उन स्थितियों में सबसे अधिक उपयोगी है जहां आप शब्दों को ठीक उसी प्रकार लिखते हैं जैसा उनका उच्चारण होता है। 2. हिंदी रेमिंगटन :
हिंदी रेमिंगटन सामन्य रेमिंगटन हिंदी टाइपराइटर है। इसमें रेमिंगटन की- बोर्ड के आधार पर टाइपिंग की जा सकती है।
3. हिंदी टाइपराइटर :
एक और ऎसा की-बोर्ड जो आम तौर पर टाइपिंग में इस्तेमाल होता है। इसमें हिंदी टाइपराइटर की- बोर्ड के आधार पर टाइपिंग की जा सकती है।
4. इंस्क्रिप्ट की-बोर्ड :
एक ऎसा हिंदी की-बोर्ड जहां लेखक मूल वर्णों को क्रमबद्ध तरीके से लिखता है और एक अंर्तनिहित "लॉजिक" यह तय करता है कि इनमें से किन वर्णों को जोड़ा जाए या निकाला जाए और वाक्य बनाया जाए।
5. वेबदुनिया की-बोर्ड :
एक हिंदी की-बोर्ड जो वेबदुनिया की-बोर्ड के क्रमानुसार हिंदी टाइप करता है।
6. हिंदी विशेष वर्ण :
एक ऎसा की-बोर्ड जिसमें हिंदी के सभी संभाव्य विशेष वर्ण होते हैं।
7. एंग्लो नागरी की-बोर्ड :
एक और हिंदी की-बोर्ड जो टाइपिंग में इस्तेमाल होता है। इसमें भी टाइपिंग वेबदुनिया की-बोर्ड के क्रमानुसार होती है। हिंदी आई एम ई में इतनी अलग-अलग विशेषताओं के होते हुए लेखक सरलता से माइक्रोसॉफ़्ट ऑफ़िस में हिंदी में किसी भी प्रकार का दस्तावेज़ टाइप कर सकता है।
हिंदी आई एम ई के इस्तेमाल में कुछ खास बातें ध्यान् रखने योग्य हैं। भारतीय लिपियों की जटिलता और उनके बारे में चल रहे अनुसंधान देखते हुए हिंदी में टाइपिंग करते समय कुछ बातें याद रखें।
1. अगर आप माइक्रोसॉफ़्ट एक्सेल में टाइप कर रहे हैं तो टाइप किए हुए शब्द स्पेस, एंटर या टैब बटन दबाने से पहले नहीं दिखेंगे।
2. जब शब्दसूची की कस्टमाइज़ विंडो बंद कर दी जाती है तो कंप्यूटर की स्क्रीन पर एक छोटी विंडो खुली रहेगी।
3. यदि माइक्रोसॉफ़्ट फ्रंट पेज़ या माइक्रोसॉफ़्ट आउटलुक के HTML कंपोज़ ऑप्शन में हिंदी बहुत तेजी से टाइप की जाती है तो प्रोग्राम अचानक बंद हो सकता है। इसलिए मध्यम गति की टाइपिंग अपनाएं।
4. माइक्रोसॉफ़्ट एक्सेल में हिंदी लिपि की टाइपिंग के दौरान बिना कारण प्रोग्राम बंद हो जाने की उच्च संभावना होती है, अत: समय-समय पर अपना कार्य "save" करते रहें।
5. माइक्रोसॉफ़्ट फ्रंट पेज़ या माइक्रोसॉफ़्ट आउटलुक के HTML Mail ऑप्शन में हिंदी लिपि लिखते समय कार्य थोड़ा धीमा हो जाता है।
6. अंग्रेज़ी की- बोर्ड ऑप्शन या स्थापित किए गए किसी भी आई एम ई के बीच अदला-बदली के दौरान यदि आखिरी शब्द के बाद जगह नहीं दी गयी तो वह मिट जाता है।
7. माइक्रोसॉफ़्ट फ्रंट पेज़ या माइक्रोसॉफ़्ट आउटलुक के HTML कंपोज़ ऑप्शन में नई पंक्ति पाने के लिए दो बार "Enter" बटन दबाना ज़रूरी है।
8. यदि कोई शब्द/ अक्षर टाइप करने के बाद बिना कोई जगह दिए हुए ( जैसे कि स्पेस, एंटर या टैब दबाए हुए) तीर के निशान वाले बटन दबाए गए तो उसके काम करने के लिए उस बटन को दो बार दबाना होगा। अगर शब्दों के बाद जगह है तो बटन एक बार में काम करेंगे।


भाषा के विकास में लिपि का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। भारत में राष्ट्रभाषा के नाम पर विरोध हो सकता है। राष्ट्रलिपि का सम्मान नागरी लिपि को मिलना चाहिए। राष्ट्रलिपि नागरी लिपि के विकास में सभी की भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए।
जय नागरी, जय विनोबा जी।

(संदर्भ- हिंदी विकिपीडिया,भाषा इंडिया, नागरी लिपि परिषद,यूनिकोड.ओरजी )

गुरुवार, 15 अप्रैल 2010

हिंदी तिमाही बैठक में चर्चा करने हेतु विषयों की सूची

1. रबर-स्टैंप, फाईल कवर, रजिस्टरों के नाम, नामपट्ट आदि में हिंदी-अंग्रेजी का प्रयोग।
2. ग्राहकों के साथ मराठी/ हिंदी पत्राचार ।
3. हिंदी पत्रों का उत्तर हिंदी में देना ।
4. हिंदी पत्राचार का प्रतिशत बढाना ।
5. तिमाही हिंदी कार्यशाला का आयोजन ।
6. हिंदी पुस्तकें, शब्दकोश, हिंदी समाचार पत्र की खरीद ।
7. मराठी-हिंदी फॉर्म का प्रयोग ।
8. राज्य सरकार के साथ हिंदी पत्राचार करना ।
9. मा. संसद सदस्य, मा. विधायक, मा. दूरसंचार सल्लागार समिति सदस्य आदि महत्वपूर्ण व्यक्तियों के साथ
हिंदी पत्राचार करना ।
10. हिंदी पत्राचार के आकडों के लिए आवक-जावक रजिस्टर रखना ।
11. पूराने कंप्यूटर के विंडो 98 पर सुशा, एस.एल.भारती, बरह आदि मुफ्त हिंदी सॉफ्टवेअर का प्रयोग करना ।
12. नए कंप्यूटर ( विंडो 2000, विंडो विस्टा , एक्स-पी आदि में हिंदी यूनिकोड सक्रिय करना
13. तिमाही राजभाषा प्रगति रिपोर्ट भाग I भेजना ।
14. हिंदी प्रोत्साहन योजना पुरस्कार में सहभाग हेतु प्रोत्साहित करना ।
15. हर वर्ष सितंबर में हिंदी पखवाडा एवं 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाना ।
16. कार्यालय के सभी फॉर्म द्विभाषी बनाना ।
17. राजभाषा कार्यान्वयन हेतु जाँच-बिंदु निश्चित करना ।
18. उपस्थिति रजिस्टर हिंदी में बनाना ।
19. हिंदी में हस्ताक्षर करना ।
20 अग्रेषण पत्र, स्मरण पत्र, पृष्ठांकन, छुट्टी का आवेदन पत्र, अग्रिम राशि ( यात्रा, एल.टी.सी, जी.पी.एफ
आदि ) में हिंदी का प्रयोग अनिवार्य करना ।
21. राजभाषा वार्षिक कार्यक्रम पर चर्चा करना ।
22. राजभाषा निरीक्षण हेतु रिकार्ड रखना ।

संसदीय राजभाषा समिति द्वारा केंद्र सरकार के कार्यालयों का निरीक्षण




       संसदीय राजभाषा समिति समय-समय पर देश के विभिन्न भागों में अवस्थित केंद्र सरकार के विभिन्न कार्यालयों/ निगमों / उपक्रमों / फ़ैक्टरियों तथा प्रशासनिक कार्यालयों का निरीक्षण करती रहती है।  समिति के निरीक्षण कार्यक्रम की जानकारी प्राय: संबंधित कार्यालयों को 2-3 सप्ताह पहले उपलब करवायी जाती है तथा इसकी सूचना सभी कार्यालयों को फ़ोन तथा फ़ैक्स पर भी दी जाती है।
II.        अभी हाल में संसदीय राजभाषा समिति द्वारा कुछ कार्यालयों का निरीक्षण करते समय यह देखा गया है कि संबंधित कार्यालय के मुख्यालय से संबंधित प्रश्नावली पर हस्ताक्षर करनेवाले अधिकारी निरीक्षण बैठक में उपस्थित नहीं थें , समिति ने उनके इस आचरण को गंभीरता से लिया है और इसके लिए संबंधित कार्यालय की कडे शब्दों में निंदा की है।
III.       इन परिस्थितियों में संबंधित कार्यालयों से यह अपेक्षित है कि वे समिति की  मर्यादा को देखते हुए उनके कार्यालयों के निरीक्षण प्रश्नावली पर हस्ताक्षर  करनेवाले अधिकारी  स्वयं इन बैठकों में उपस्थित रहें और यह सुनिश्चित करें की  उनके कार्यालय में राजभाषा नीति संबंधी कार्यान्वयन का कार्य देखने वाले अधिकारी भी मुख्यालय के प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित हैं।  संबंधित कार्यालय को यह भी निर्देश दिए जाते हैं कि निरीक्षण के समय संबंधित कार्यालयों के प्रधान तथा अन्य वरिष्ठ अधिकारी एवं उनके मुख्यालय के वरिष्ठ अधिकारी तथा  विभाग के प्रतिनिधि जिनका स्तर उप सचिव से कम न हो तथा जो अपने- अपने कार्यालयों में राजभाषा नीति का कार्यान्वयन संबंधी कार्य देखते हों, बैठक में उपस्थित रहें जिससे कि समिति की मर्यादा के अनुकूल निरीक्षण कार्यक्रम सुचारु रूप से चल सके।  प्रत्येक कार्यालय से यह अपेक्षा की जाती है कि निरीक्षण कार्य के लिए वह अपना संपर्क अधिकारी नामित करे तथा उसका पूरा नाम, पद नाम, निवास तथा कार्यालय दोनों का फ़ोन नंबर संपर्क के लिए  मुख्यालय एवं समिति कार्यालय को सूचित करें।  यह संपर्क अधिकारी भारत सरकार के उपसचिव के स्तर से कम नहीं होना चाहिए।  संबंधित  कार्यालय से यह अपेक्षा भी की जाती है कि वह यह सुनिश्चित करें कि समिति कार्यालय को प्रश्नावली के मायम से दी जाने वाली जानकारी अपने आप में पूर्ण हैतथ्यात्मक है तथा सही है।  इन कार्यालयों से यह भी अपेक्षित है कि वे कृपया यह भी सुनिश्चित कर लें कि उनके कार्यालय में राजभाषा कार्यान्वयन समिति की तिमाही बैठकें नियमित रूप से आयोजित हो रही हैं और इन बैठकों में सरकारी काम-काज में हिंदी  के प्रयोग की समय-समय पर समीक्षा की जाती है।
    IV.       संसदीय राजभाषा समिति द्वारा निरीक्षण किए जाने वाले कार्यालयों के प्रमुख/प्रशासनिक    
 प्रावधनों के लिए ध्यान देने योग्य बातों का उल्लेख इसके साथ संलग्न परिशिष्ट में दिया गया                     है ।  अत:  विभाग के सभी संबंधित कार्यालयों निगमों/ उपक्रमों / फैक्ट्रियों के
अध्यक्षों एवं प्रधानों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे संसदीय राजभाषा समिति के                         निरीक्षण के दौरान उक्त बातों पर यान दें और समिति की मर्यादा  के अनुकूल अपेक्षित                       कार्रवाई  करें।
संसदीय राजभाषा समिति द्वारा विभाग के उपक्रमो /निगमों/फैक्ट्रियों के निरीक्षण के दौरान कार्यालय के प्रशासनिक प्रधान द्वारा यान देने योग्य बातें :
1.    संसदीय राजभाषा समिति द्वारा निर्धारित निरीक्षण प्रश्नावली को मुख्यत: 4 भागों में बांटा जा सकता है:- (1)  सामान्य सूचना (2)  राजभाषा नियमों के अनुपालन की स्थिति (3)  सरकार द्वारा हिंदी के प्रयोग संबंधी आदेशों पर कार्यालय द्वारा की गयी अनुवर्ती कार्रवाई (4)  विविध जानकारी  आदि में बांटा जा सकता है।  प्रश्नावली को भरते समय कार्यालय में कार्यरत अधिकारियों/ कर्मचारियों के हिंदी ज्ञान की जानकारी देते समय हिंदी में प्रवीणता प्राप्त / कार्यसाधक ज्ञान रखने वाले/ प्रशिक्षण पा रहे अधिकारियों / कर्मचारियों की सूचना स्पष्टत: दी जानी चाहिए।  कोष्टक में यदि पहले निरीक्षण हुआ है तो पिछले आंकडे भी प्रस्तुत किए जाए ।
2.    यह सुनिश्चित किया जाए कि हिंदी में प्रवीणता/ कार्यसाधक ज्ञान रखने वाले
अधिकारी/ कर्मचारी अपना अधिकांश काम हिंदी में कर रहे हैं।  हिंदी में दक्ष आशुलिपिकों की सेवाओं का समुचित उपयोग हो रहा है।
3.राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 3 (3) के अंतर्गत जारी किए  जाने वाले   कागजात बिना किसी अपवाद के हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में जारी किए  जाएं।
4. राजभाषा नियम, 1976 के नियम 5 के अंतर्गत हिंदी में प्राप्त सभी पत्रों का उत्तर हिंदी में दिया जा रहा है।  इस कार्य की जांच के लिए आवश्यक जांच बिंदु  बनाए गए हैं।  कार्यालय का नाम राजभाषा नियम 10 (4) के अंतर्गत भारत के राजपत्र में अधिसूचित किया जा चुका है और नियम 8(4)  के अंतर्गत हिंदी में प्रवीणता प्राप्त सभी अधिकारियों और कर्मचारियों को अपना सरकारी काम-काज हिंदी में करने के लिए व्यक्तिश: आदेश जारी किए जा चुके हैं।  कार्यालय    के प्रयोग में लाए जानेवाले सभी कोड मैनुअल आदि नियम 11 में की गयी व्यवस्था के अनुसार द्विभाषी रूप में प्रकाशित या उपलब होने चाहिए। सभी प्रकार के रजिस्टरों में प्रविष्टियां हिंदी में की जा रही हैं और रबर की मोहरे, साईन बोर्ड, सील आदि भी द्विभाषी रूप में तैयार किए जा चुके हैं।
5. राजभाषा विभाग द्वारा जारी किए गए आदेशानुसार अंग्रेजी में प्राप्त पत्रों का उत्तर             भी हिंदी में दिया जा रहा है।  मूल पत्राचार के संदर्भ में निर्धारित सीमा तक हिंदी              का प्रयोग हो रहा है।
6.    राजभाषा विभाग द्वारा जारी किए जाने वाले वार्षिक कार्यक्रम के अनुरूप              कार्यालय में अपेक्षित मात्रा में राजभाषा विभाग द्वारा जारी किए गए आदेशानुसार  अंग्रेजी में प्राप्त पत्रों का उत्तर भी हिंदी में दिया जा रहा है।  मूल पत्राचार के संदर्भ  में निर्धारित सीमा तक हिंदी का प्रयोग हो रहा है।  हिंदी के टाइपराइटर अथवा  कंप्यूटरों की व्यवस्था की जा चुकी है तथा इन सुविधाओं का सही उपयोग किया  जा रहा है।
7.  जिन्हें हिंदी  कार्य  की  योग्य जानकारी नहीं है अथवा जो अभी हिंदी टाइप/       आशुलिपि में प्रशिक्षित नहीं है उन्हें योजनाबद तरीके से प्रशिक्षण के लिए नामित         किया गया है।                                            
8. विभागीय प्रशिक्षण संस्थानों में हिंदी मायम से अधिकारियों/ कर्मचारियों को          प्रशिक्षण दिया जा रहा है एवं पाठयक्रम संबंधी साहित्य हिंदी में उपलब है।         
9. राजभाषा नीति के कार्यान्वयन एवं अनुवाद कार्य के लिए प्रत्येक कार्यालय में अपेक्षित मात्रा में अधिकारियों/कर्मचारियों की व्यवस्था है तथा इस कार्य के लिए स्वीकृत सभी पद नियमानुसार भरे गये हैं।
10. वार्षिक कार्यक्रम में निर्धारित लक्ष्यों के अनुसार पुस्तकों की खरीद पर 50             प्रतिशत बजट अनुदान हिंदी पुस्तकों पर खर्च किया जा रहा है।
11. कार्यालय द्वारा प्रयोग में लायी जाने वाली सभी प्रकार के स्टेण्डर्ड फार्म आदि द्विभाषी रूप में तैयार किए जा रहे हैं।     
12.   यदि कार्यालय द्वारा भर्ती और पदोन्नति संबंधी कोई लिखित और मौखिक परीक्षा  आयोजित की जा रही है तो उम्मीदवारों को परीक्षा में हिंदी का विकल्प उपलब है।
13.   सभी अधिकारियों / कर्मचारियों की सेवा पुस्तिकाओं / सेवा अभिलेखों में की जाने  वाली प्रविष्टियां हिंदी में की जा रही हैं।
14.   कार्यालय की राजभाषा कार्यान्वयन समिति की बैठकें प्रत्येक तिमाही में नियमित रूप से आयोजित हो रही हैं और इन बैठकों की कार्य सूची और कार्यवृत्त हिंदी में जारी किए जा रहे हैं।ं   
15.   फाइलों पर टिप्पणी और आलेखन को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न प्रकार की पुरस्कार योजनाएं  चलायी जा रही हैं।
16.   हिंदी में कार्य करने में पायी जाने वाली झिझक को दूर करने के लिए समय-समय पर हिंदी कार्यशालाएं आयोजित की जा रही हैं।
17.   कार्यालय द्वारा आयोजित समारोह और सम्मेलनों के निमंत्रण पत्रों और अन्य कार्यवाही हिंदी में की जा रही है।
18.   कार्यालय की गृह पत्रिकाओं और अन्य सूचना पत्रों में हिंदी का समुचित प्रयोग हो रहा है।
19.   निरीक्षण कार्यक्रम संबंधी कार्यालय ज्ञापन में दी गई हिदायतों के अनुसार निर्धारित प्रश्नावली की  प्रतियां हिंदी और अंग्रेजी में भरकर समिति सचिवालय को निर्धारित तिथि तक भेज दी जानी चाहिए ।
20.   यथासंभव बैठक की व्यवस्था कार्यालय के किसी सम्मेलन कक्ष या समिति कक्ष में की जानी चाहिए।
21.   कार्यालय की ओर से बैठक में भाग लेने वाले अधिकारियों के नामों और पद नामों की द्विभाषी पट्टियां मेज पर लगी होनी चाहिए।
22.   जिस कार्यालय का निरीक्षण किया जाना हो उसके एक प्रतिनिधि को, यथास्थिति
गेस्ट हाउस से या उस कार्यालय से जहां उप समिति की पहली बैठक हुई हो,
उपसमिति के साथ होना चाहिए।
 23. यह सुनिश्चित कर लिया जाना चाहिए कि बैठक में निरीक्षित कार्यालय के  प्रशासनिक प्रधान तथा उनके वरिष्ठ सहयोगी उपस्थित रहें।                        
24. सभी संबंधित सामग्री एवं सांख्यिकी सूचनाएं आदि निरीक्षण के लिए तैयार रखी  जाए।  हिंदी के प्रगामी प्रयोग संबंधी आदेशों, त्रैमासिक प्रगति रिपोर्ट, राजभाषा  कार्यान्वयन समिति के गठन एवं बैठकों संबंधी फाइल तथा कर्मचारियों को हिंदी के सेवाकालीन प्रशिक्षण हेतु भेजने के लिए रजिस्टर आदि बैठक कक्ष में तैयार रख जाए ।
25.   जिस कार्यालय का निरीक्षण किया जाना हो उसके प्रशासनिक प्रधान का राजभाषा नीति के कार्यान्वयन के संबंध में अपने कार्यालय द्वारा किए गए प्रयासों, इस दिशा में उपलबियों तथा आगामी योजनाओं को दर्शाते हुए संक्षिप्त विवरण की प्रतियां पर्याप्त संख्या में समिति के अधिकारियों को बैठक से पहले दे दें।
26.  यह सुनिश्चित कर लेना चाहिए कि उपसमिति के सदस्यों को दी जाने वाली                        जानकारी सभी प्रकार से सही और पूरी हो।
27. संबंधित कार्यालयों के अधिकारी बैठक के मुख्य मुद्दें नोट कर सकते हैं।  बैठक की
 निजी वीडियो रिकार्डिग नहीं की जा सकती है।
28  यह भी यान रखा जाना चाहिए कि निम्नलिखित बातों से समिति / उपसमिति की            मर्यादा भंग होती है और उसका अपमान होता है:-
  ( क )  उत्तर देने से इन्कार करना ।
  ( ख )   असल बात को घुमा- फिराकर कहना, झूठी गवाही देना, गलत दस्तावेज प्रस्तुत करना, सत्य को छिपाना अथवा समिति/ उप-समिति को  गुमराह   करना।
   (ग )     समिति/ उपसमिति का अवमानना करना या अपमानजनक उत्तर देना ।





शनिवार, 3 अप्रैल 2010

गोवा ट्रेक के संस्मरण




अपनी मर्ज़ी से कहां हम अपने सफर के हम है
रुख हवाओं का जिधर का है , उधर के हम है।
मेरे मोबाईल पर सुप्रसिद्ध गजल गायक जगजीत सिंग की आवाज़ गुंज रही थी। तभी सोलापुर से मेरे साडु निलेश भंडारी से फोन आया - विजय हमें गोवा ट्रेक के लिए निकलना है । मैं सोचने लगा यह ट्रेक क्या बला है? उम्र के मध्यम पडाव में क्या मैं ट्रेक कर सकता हूँ । क्या मैं जंगल, पहाड से गुजर सकता हूँ। निलेश भंडारी ने अब तक पाँच ट्रेक पुरे किए थे। निलेश ने मुझे आश्वस्त किया । मुझे ज्ञात हुआ कि इस ट्रेक में 10 साल के बच्चों को लेकर 70 साल के बुजुर्ग लोग भी हिस्सा ले सकते है। शर्त यह है कि आप तंदरुस्त हो और रोज़ाना 15/20 कि.मी. पैदल चलने की क्षमता हो। चलते समय आपके पीठ पर रॅक सॅक का कम से कम 5 कि.ग्रम/ 10 कि.ग्रम का वजन उठाना पडता है।
दि. 15 दिसंबर 07 से 02 जनवरी 08 के बीच यूथ होस्टल्स एसोशिएशन ऑफ इंडिया तथा स्पोर्ट एथॉरिटी ऑफ गोवा के संयुक्त तत्वावाधन में यह ट्रेक आयोजित किया गया था । यूवा तथा खेल मंत्रालय, भारत सरकार के आीन यूथ होस्टेल्स ऑफ एसोशिएशन पूरे भारत में विभिन्न राज्यों में राष्ट्रीय ट्रेक आयोजित करते है। इस संबंध में पूरी जानकारी आप www.yhaindia.org पर प्राप्त कर सकते है। ट्रेक का ऑन लाइन पंजीकरण किया जा सकता है। आपको स्वास्थ्य संबंधित वैद्यकिय प्रमाण पत्र तथा ट्रेक शुल्क भेजना है। आप किसी नज़दीकी युथ होस्टेल एसोशिएशन कार्यालय से संपर्क कर सकते है।
इस बार गोवा स्टेट ब्रँच द्वारा इस ट्रेक का आयोजन किया गया था । गोवा राज्य प्राकृतिक सौंदर्य, विस्तीर्ण सुंदर बीच, गिरीजा घरों और मंदिरों के लिए सुप्रसिद्ध है। अरबी समुद्र के विस्तीर्ण तट पर गोवा के अनेक मशहुर बीच फैले हुए है। गोवा की बेहतरिन वादियाँ, आकर्षक पहाडों का मन लुभावने आमंत्रण, लैंड स्केप, पाम वृक्षों का घना जंगल सागर की लहरों को चुमनेवाला सुरज , सुनहरी रुपेरी रेत के बीच कर्नाटक और गोवा की सीमा पर स्थित दूधसागर वॉटर फॉल हमारा मन मोह ले रही थीं। पश्चिम घाट की यह पहाड़ी हिमालयीन पहाड़ी से कुछ कम नहीं है। ट्रेकिंग मार्ग में वही रोमांच है जो हिमालय की पहाड़ियों में नजर आ जाता है। आठ दिनों के इस ट्रेक की शुरुआत स्पोर्ट एथारिटी ग्राउंड, कंपाल, पणजी स्थित बेस कैंप से शुरु हुई। सोलापूर यूनिट के 11 तथा अहमदनगर के 2 सदस्य इस ट्रेक में शामिल हुए। इस के अलावा पुणे, मुंबई, जोधपुर, अहमदाबाद, गुवाहाटी के कुल 49 सदस्यों की ब्ॉच क्रं. 9 में शामिल हो गई । बेस कैंप पणजी पहूँचने पर हमारा हार्दिक स्वागत वहॉं के कैंप लीडर श्री मनोज जोशी, रोहिदास नाईक, रुपा म्ॉडम, श्री.रोहिदास नाईक आदि लोगों ने किया। बेस कैंप में 30 तंबू लगाएँ गए थे। हर तंबू में 10 से 15 लोग आराम से रह सकते थे। युथ होस्टल असोसिएशन ने सहभागी ट्रेक करने वालों के लिए आवास भोजन, नाश्ता चाय-पानी आदि बेहतरीन सुविधा प्रदान की। बेस कैंप का माहौल मिल्ट्री अथवा पुलिस विभाग जैसा लगा । निश्चित समय पर नाश्ता, भोजन, चाय लेने के लिए कतार में खडा होना पडता था। रात को 9 बजे कैंप फायर याने मनोरंजन का कार्यक्रम होता है। इसमें सहभागी सदस्य अपनी कला का प्रदर्शन कर सकते है। कोई गीता गाता है, कोई जोक सुनाता है तो कोई शेरोशायरी करता है। कैंप फायर यह एक आकर्षक बिंदु है। विभिन्न प्रांतों से पधारे हुए विभिन्न भारतीय भाषा भाषी मित्रगण मौजमस्ती करते है। यहाँ एक संपूर्ण हिंदुस्तान का छोटा रुप देखने को मिलता है।
दुसरे दिन ट्रेक की जानकारी दी गई। गोवा के जंगल और बीच की भौगोलिक स्थिति तथा उस परिसर में रहनेवाले पशुपक्षियों की भी जानकारी दी गई। हमें विभिन्न साँपों की प्रजातियाँ उनके लक्षण और ठिकानों की जानकारी प्रत्यक्ष साँपों को प्रदर्शित करके दी । हमें यह हिदायत दी गई कि ट्रेक के दौरान धुम्रपान तथा मद्यपान करना पूरी तरह निषिद्ध है। गोवा के बीच पर अनेक विदेशी महिलाएँ कही अर्ध नग्न तो कही पर पूरी तरह स्थिति में सनबाथ लेती रहती है। उनके फोटो निकालना या उन्हें कॅमेरे से शुट करना मना है। अगर कोई पकडा गया तो विदेशी लोग मार पिटाई करते है और स्थानिक गोवा के लोग भी उनका सहयोग करते है। गोवा पर्यटन के कारण विदेशी धन भारत में आ जाता है। गोवा का कारोबार विदेशी पर्यटकों पर पर ज्यादा निर्भर है। इसलिए गोवा के स्थानिक लोग विदेशी पर्यटकों का ध्यान रखते है। उन्हें कोई परेशानी न हो इसलिए हमेशा सतर्क रहते है।
भोजन के उपरांत सागर के बीच स्टीमर नाव के जरीए हमें डॉल्फिन मछलियाँ दिखाने के लिए चक्कर लगाया गया । डॉल्फिन मछलियाँ बहुत शर्मिली और संवेदनशील होती है। स्टीमर का आवाज सुनकर पानी में दूर-दूर भागती थी। कभी-कभी कुछ डॉल्फिन मछलियाँ नजदीक से देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । हमारे अनेक सदस्यों ने फोटो लिए , तो कुछ सदस्यों ने हैन्डी कॅम से शुट किया । तीसरे दिन हम वेलिसावो बीच की ओर चल पडे। ट्रेक पर निकलने से पहले हमारे कैंप लीडर तथा उनके वरिष्ठ सहयोगियों ने हमारे बैग से कुछ जरुरी चीजें निकालकर रॅक सॅक में डाल दी। ट्रेक करते समय रॅक सॅक का वजन बहुत कम होना चाहिए क्योंकि जंगल पहाड से गुजरते समय भारी बस्ता मुसीबत बन जाता है। हमारे रॅक सॅक में दो कॉटन शर्ट, दो कॉटन पैंट, सन कैप, हंटर शुज, कॉटन साक्स की दो जोडियाँ, टॉर्च , वॉटर बॉटल , लंच बॉक्स स्टील मग अथवा टंबलर प्लेट, चम्मच, पेन, चक्कू , सुई धागा, गॉगल, कोल्ड क्रीम, साबुन, टॉईलेट पेपर, कॅमेरा तथा आपकी दैनिक दवाइयाँ (अगर आप ले ते हो तो ) आदि चीजों को रॅक सॅक में पॅक किया गया था ।
वेलसावो बीच पहूँचने के लिए हमें बोगमालो बीच तक लोकल बस द्वारा जाना पडा।यह ट्रेक पूरी तरह सागर की तट से लहरों का सुखद स्पर्श और थंडी हवा से भरा था। वेलसावो बीच पहूँचने तक शाम के पाँच बज चुके थे। वेलसावो बीच के कैंप लीडर ने हमें वेलकम ड्रींक (शरबत ) पिलाया । शाम को 6 बजे हम सब बीच की रेत पर बैठ गए, क्योंकि सागर में सुरज डुबने का लुभावना दृश्य हमें देखना था। रात के भोजन के बाद फायर कैंप हुआ । इस बेहतरीन मनोरंजन के बाद मन हल्का और शरीर में चुस्ती आ गई। हम सब थकावट भुलकर घनघोर निद्रा में प्रवेश कर गए।
चौथे दिन सुबह कैंप लीडर ने 6 बजे सी.टी बजाई। उसके बाद बेड टी हर एक कैंप में प्राप्त हुआ । नहा धोकर हम सब नाश्ता लेकर तथा लंच बॉक्स पॅक करके बेनॉलियम बीच की ओर चल पडे। यह रास्ता सागर किनारे से सुनहरी रेती से गुजर रहा था । नंगे पैरों को छुनेवाली सागर की लहरें , सागर की लहरों पर तैरते किंग फिशर और अन्य समुद्री पक्षियों के झुंड, सागर किनारों की लहरों से खेलते बच्चे, युवक और बुजुर्ग लोग यह नजारा अविस्मरणीय था। इतना विस्तीर्ण सागर तट हमने पहली बार देखा। वेलसावो बीच के पास झुआरी केमिकल फर्टिलाइजर फैक्टरी से यह विस्तीर्ण सोलह कि. मी. का बीच बेनॉलियम तक फैला हुआ है। दिनभर सागर का साथ रहा। सागर के तट पर आनेवाली नटखट आवाज करती लहरें मनमोह ले रही थी। शाम को 5 बजे हम बेनॉलियम कैंप पहूँच गए। फ्रेश होकर हमने चाय-नाश्ता लिया। फिर एक बार कैंप फायर हुआ ।
पाँचवें दिन हम बेनॉलियम बीच से सागर की ओर चल पडे। दुध सागर जाने के लिए हमने मडगांव से कोलेम का रास्ता ट्रेन से पार किया। कोलेम से दूध सागर यह एक अनोखा जंगल ट्रेक है। दूध सागर वॉटर फॉल गोवा और कर्नाटक के बॉर्डर पर बसा हुआ है।दुध सागर वॉटर फॉल देखने के लिए यहाँ अनेक विदेशी सैलानियों की भीड इकट्ठा होती है। बेनॉलियम कोलेम गांव से सीधे दूध सागर वॉटर फॉल तक जीप द्वारा अनेक विदेश सैलानी सफर करते हुए दिखाई पडे। लेकिन हमें तो पैदल जंगल पार करना था। गोवा फॉरेस्ट कार्यालय का टोलनाका दिखाई पडा। यहाँ पर प्रवेश शुल्क तथा कैमरा शुल्क अदा करने पर आगे जंगल जाने की इजाजत मिलती है। जंगल से गुजरते हुए धुम्रपान करना सक्त मना है। पूरे ट्रेक में धुम्रपान या नशापानी करना सक्त मना था। पीनेवाले बेहाल हो गए थे। उन्हें डर था अगर पकडे गए तो बीच रास्ते से ही हमें वापिस घर लौटना पउेगा। इसलिए पीनेवाले भी पुरे ट्रेक के दौरान नशा पानी से अनचाहे मन से दूर रहे। ऊपर की पहाडियों से नीचे की ओर दौडता हुआ पानी का प्रचंड जलप्रपात (वाटरफॉल) बहुत ही आकर्षक एवमं मनोहरी था । तीन स्टेप्स से गुजरता हुआ यह पानी गोवा के घने जंगल से पार होकर सागर में जाकर मिलता है। दूधसागर वॉटर फॉल के नीचे पानी के तालाब में विदेशी युवक-युवतियाँ तैरने का आनंद ले रहे थे। हमारे गाईड ने बताया कि इस रुके हुए पानी के अंदर शक्तिशाली करंट होता है। जो अच्छे अच्छे तैराइयों को खीचकर पानी में बहाकर ले जाता है। पिछले वर्ष ट्रेक करनेवाले एक हिमाचली युवक की मृत्यू उसकी बेपरवाई के कारण हो गई थी। दूधसागर वॉटरफॉल के ऊपर की पहाडी की चढाई करना हमें बहुत कठीन लग रहा था। साँस फुल रही थी। पैर काँप रहे थे। लेकिन हम सब ने इस पहाड को पार किया। दूधसागर कैंप पहूँचने में हमें काफी समय लगा। रात का अंधेरा होने से पहले जंगल पार करना बहुत जरुरी होता है। रात को जंगली जानवर बाहर निकल पडते है। हमारे दो युवा सहयोगी जंगल में रास्ता भूल गए। इसमें सुबोध प्रभु जो अमेरिका में उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहा है। हर रास्ते पर कही पेड तो कही पत्थरों पर ट्रेक का निशाण लगाया होता है। लेकिन कभी कभी ट्रेक करते समय यह निशाण देखना हम भूल जाते है। दूधसागर कैंप पहूँचने पर पीछे रास्ता भटके हुए हमारे साथियों की तलाश में हमारे ब्ॉच के लिडर तथा गाइड उन्हें ढुंढने निकले पडे। अंधेरे हो गया था लेकिन बैटरी की प्रकाश और आवाज देकर उनको ढुंढ लिया गया। दूधसागर कैंप पहूँचने पर सबने राहत की साँस ली। कैंप फायर के बाद हम सभी घोडे बेचकर सो गए।
छटे दिन हम दूधसागर से कुवेशी की ओर चल पडे। यह इलाका कर्नाटक के कारवार जिले का हिस्सा है। दस कि.मी का यह रास्ता पूरी तरह जंगली रास्ता है। रास्ते में अनेक प्रकार के पेड पौधे, फूल नजर आए। यह जंगल पूरी तरह सुरक्षित रखा गया है। गिरे हुए पेड भी अपनी जगह पर सुखकर मिट्टी मे नष्ट होते जा रहे थें। पेड की शाखाओं पर बौठे हुए सजग प्रहरी पंछी अलग प्रकार की आवाज निकाल रहे थे। हमारे कुछ अनुभवी ट्रेक करनेवालों ने बताया कि जंगल के पशुपक्षी और जानवरों के लिए यह एक विशिष्ट संकेत है कि जंगल में मनुष्य आ रहा है। जंगल की यह प्राकृतिक रक्षा और प्रतिरक्षा की सृष्टी देखकर हम चकित हो गए। कुवेशी का कैंप एक नदी के झरने के तट पर बसा हुआ था। रातभर मेंढक की आवाज के साथ सुर मिलाकर हमारे कुछ सहयोगी खराटे लेते हुए सुर मिला रहे थे।
सातवें दिन हम अनमोड की तरफ चल पडे। यह हमारे ट्रेक का सबसे लंबा रास्ता रहा। जो करीब 22 कि.मी का फासला रहा। कर्नाटक राज्य के अनमोड गांव के नजदीक एक राष्ट्रीय महामार्ग पर हमारा कैंप लगाया गया था। सुबह हम तैयार हो रहे थे तब बेस कैंप पणजी के कैंप लीडर श्री मनोज जोशी अपने साथीदार के साथ हमारा हालचाल पुछने के लिए पहुँच गए थे। उन्होंने हमारी कुछ समस्याओं को बडी ध्यान से सुना। हमने कुछ सुझाव भी दिए। अनमोड से तांबडी सुरला आठ कि.मी. का रास्ता हम पैदल पार कर गए। यह हमारा आखरी पडाव था। घर की याद आ रही थी। तांबडी सुरला पहूँचने पर हमने प्राचीन महादेव मंदिर का दर्शन किया। तांबडी सुरला के नदी में हम नहा धोकर बेस कैंप जाने के लिए तैयार हो गए। दुपहर 3 बजे वहां गोवा कदंब ट्रान्सपोर्ट की बस हमें मिल गई । हम बस में सवार होकर शाम 5 बजे पणजी कैंप में पहूँच गए। बेस कैंप के फायर कैंप कार्यक्रम के दौरान हमें प्रमाणपत्र वितरीत किए गए। गोवा दूरसंचार के रोहिदास नाईक वहाँ फिल्ड अधिकारी के रुप में काम कर रहे थे। उनके करकमलों द्वारा प्रमाणपत्र वितरित किए गए। वर्ष का आखरी दिवस 31 दिसंबर हम सबने गोवा घुमकर बिताया। 31 दिसंबर की रात सागर पर गोवा पर्यटन की क्रुझ पर हम सवार हो गए। एक घंटे के इस सफर में क्रुझ पर रातभर संगीत नृत्य करते हुए युवा-युवती बच्चे तथा बुजुर्ग लोग भी अपनी आयु भुलकर नाच रहे थे। नए साल के प्रथम दिवस पर हम श्री शांता दूर्गा, श्री मंगेशी, पुराना चर्च देखने गए। राष्ट्रीय सागर विज्ञान अनुसंधान केंद्र देखने गए। यहाँ सागर के विभिन्न पहलुओं की डॉक्युमेंटरी फिल्म देखी। सागर विज्ञान संबंधी अनेक प्रोजेक्ट और अनुसंधान का कार्य वहाँ चल रहा है। अंडमान निकोबार सुनामी के बाद भारत सरकार ने विशेष ध्यान दिया हुआ है।
इसी तरह हमारा यह गोवा ट्रेक ईश्वर की कृपा से सफल रहा । इस ट्रेक के कुछ फायदे भी है। तंदरुस्त जीवन के लिए चलना बहुत जरुरी है। प्रकृति के साथ ताल मिलाकर उससे एकरुप होकर जंगल पहाड, सागर, पानी से गुजरते हुए साथीदार ट्रेक भाई-भाई बन जाते है।




गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

1857 का संग्राम प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का प्रामाणिक दस्तावेज


मैंने इ.स. 2000 में नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया के लिए 1857 का संग्राम (मूल मराठी पुस्तक 1857 चा संग्राम लेखक- वि.स.वाळींबे ) का हिंदी अनुवाद किया था। इस पुस्तक को भारत सरकार के प्रौढ साक्षरता अभियान के तहत स्वीकृत किया गया है। इस पुस्तक की अब तक चार आवृत्ति प्रकाशित हो चुकी है। हिंदी अनुवाद प्रकाशित करने का यह मेरा पहला प्रयास रहा जिसका हिंदी जगत में स्वागत किया गया। हिंदी अनुवाद के क्षेत्र में मेरी रुचि बढ गयी। केंद्रीय हिंदी अनुवाद ब्यूरो ,नई दिल्ली के भूतपुर्व निदेशक डॉ.विचार दास जी ने इस पुस्तक पर समीक्षा लिखी जो भारतीय अनुवाद परिषद, नई दिल्ली की पत्रिका अनुवाद अंक- 111 अप्रैल-जुन 2002 के अनवाद मुल्याकंन विशेषांक में प्रकाशित की गई थी।
संबंधित समीक्षा निम्नानुसार है-
नेशनल बुक ट्रस्ट, इंडिया देश की एकमात्र ऐसी प्रकाशन संस्था है जो भारतीय भाषाओं में उचित मूल्य पर पुस्तकें पाठकों तक उपलब्ध कराती है। ‘1857 का संग्राम’ वि.स.वालिंबे द्वारा लिखित तथा विजय प्रभाकर द्वारा अनूदित ग्रामीण पाठकों के लिए प्रकाशित उसी संस्था की ऐसी पुस्तक है जो हिंदी भाषा के अल्प आय वाले पाठकों की पहुँच से दूर नहीं हैं।
1857 का संग्राम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पहली कडी है जिसे देश के अनेक रणबांकुरों ने अपने जीवन की आहुति देकर शुरु किया था। इस कडी को ‘1857 का संग्राम’ शीर्षक पुस्तक के रुप में लेखक ने रोचक शैली तथा सरल भाषा में लिखा है। पुस्तक कुल सात अध्यायों में विभाजित है। प्रथम अध्याय में 10 मई, 1857 के दिन का वर्णन किया गया है जिसमें दिल्ली के पास मेरठ छावनी में असंतोष की भडकी आग ने किस प्रकार गंगा-यमुना के सारे इलाके को अपनी लपेट में ले लेने का चित्रण किया गया है। लेखक 10 मई, 1857 की घटना को अचानक घटी घटना नहीं मानते बल्कि अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे अत्याचार और एनफिल्ड बंदूकों में भरी जाने वाली कारतूस का पूरा विवरण देते हैं जिससे अंग्रेजों द्वारा देशी सिपाहियों का धर्म-भ्रष्ट होने का खतरा था। इसी अध्याय में मंगल पांडे द्वारा सुलगाई गई चिंगारी और उनके फाँसी पर लटकाए जाने का विवरण दिया है।
दूसरे अध्याय में लेखक ने बैरकपुर के पश्चात अंबाला छावनी में विद्रोह की चिंगारी का इतिहास रोचक शैली में प्रस्तुत किया है। उन्होंने इस अध्याय में देशी सिपाहियों की मनोदशा का विवरण यूँ व्यक्त किया है:
‘मेरठ छावनी में भी अब अन्य जगहों की तरह एनफिल्ड बंदूकों की आपूर्ति होने लगी थी। पहले अंग्रेजी सिपाहियों को ये बंदूकें चलाने का प्रशिक्षण दिया गया। इसके बाद देशी सिपाहियों को प्रशिक्षण देने की योजना तय हुई थी। यह प्रशिक्षण कार्यक्रम 24 अप्रैल से शुरु होने वाला था। इसकी बिल्कुल पहली रात को हिंदू सिपाहियों ने गंगाजल की तथा मुसलमान सिपाहियों ने कुरान की कसम खाई – “ हम उसी बंदूक को हाथ लगाएंगे जिस पर चरबी नहीं लगाई गई होगी ।“
इस अध्याय में मेरठ छावनी के विद्रोही सिपाहियों के कोर्ट मार्शल का विवरण दिया है तथा उन सिपाहियों को नंगे पाँवों, बिना पगडी तथा हाथों में बेडी लटकाए मेरठ शहर में जुलूस के रुप में निकालकर जेल की तरफ ले जाते हुए तथा मेरठ शहरवासियों की आँखों में क्रोध की चिंगारी को निकलते हुए दिखाया गया है। यहीं से स्वतंत्रता संग्राम की शुरुवात हुई और देखते ही देखते दिल्ली भी बागी सिपाहियों के कब्जे में आ गई। उन्होंने सौ साल पहले प्लासी में हुई पराजय का बदला अंग्रेजों से चुकता कर लिया।
दिल्ली मे विद्रोही सिपाहियों के कब्जे की सूचना जब देश के अन्य छोटे-बडे कस्बों, गाँवों में फैली तो चारों तरफ विद्रोह की लहर दौड गई। देश का हर कोना विद्रोह की चिंगारी से जलने लगा। विद्रोह का समाचार जब नाना साहब पेशवा को मिला तो उनमें भी आजादी की ल‍हरें हिंडोले मारने लगीं। विद्रोहियों के आमंत्रण पर नाना साहब भी इस जंग में कूद पडे। तीसरे अध्याय को ‘बिठूर के महाराज’ शीर्षक दिया गया है जिसमें नाना साहब पेशवा और कानपुर में विद्रोही सैनिकों का पूरा विवरण है।
‘अवध की स्थिति’ में लखनऊ में अंग्रेजी सिपाहियों और विद्रोही सिपाहियों के घमासान तथा कूटनीति आदि का पूरा विवरण दिया है।
पाँचवें अध्याय में दिल्ली में उपद्रवियों तथा विद्रोहियों के हाथों से दिल्ली वापस अंग्रेजों के हाथ लौटने और बूढे बादशाह बहादुरशाह जुफर के पतन का खुलासा है।
छठे अध्याय में लखनऊ के पुन: अंग्रेजों के हाथ में आने और विद्रोहियों के पराजय का विवरण है। सातवें और अंतिम अध्याय में बुंदेलखंड और वीरांगना झाँसी की रानी के शौर्य का वर्णन, तात्या टोपे की कूटनीति और देश की आजादी में किया गया आत्मोत्सर्ग का उल्लेख किया गया है।
74 पृष्ठों में संकलित यह पुस्तक सन् 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का एक ऐसा प्रामाणिक दस्तावेज है जिसे लेखक ने आम पाठकों के लिए सहज, सरल भाषा और रोचक शैली में प्रस्तुत किया है। पुस्तक खोलने के बाद पुस्तक को समाप्त किए बिना पाठक का मन नहीं मानेगा। पुस्तक के हिंदी अनुवाद हिंदी भाषी पाठकों के लिए एक उपहार है। इसमें कहीं भी शब्दों की क्लिष्ठता नहीं है यानि पुस्तक ग्रामीण पाठकों के लिए मानक है।
इस पुस्तक में जहाँ प्रथम संग्राम स्वतंत्रता संग्राम में देशी सिपाहियों की आजादी के प्रति जज्बात का दर्शन होता है वहीं अंग्रेजों की क्रूरता, कुटिलता और बदले की भावना से किए गए वध एवं मासूम जनता के प्रति उनके अत्याचार भी स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। आजादी मिलने के इतने वर्षों के उपरांत देश में फैली अराजकता, हिंसा आदि को ध्यान में रखते हुए यदि उक्त पुस्तक पाठको तक पहुँचेगी तो निश्चित रुप से हमारे पूर्वजों द्वारा आजादी के लिए दिया गया बलिदान हमें सही ढंग से सोचने तथा देश में आजादी स्थापित रखने में मददगार साबित होगा ।
डिमाई आकार की पुस्तक में अक्षरो का आकार भी सही है। बीच-बीच में चित्र दिए गए हैं जोकि पुस्तक की गुणवता में वृध्दि करते है किंतु यह और उत्तम होता यदि 1857 के ऐतिहासिक स्थलों का चित्र दिया जाता तो पुस्तक की प्रामाणिकता और बढ जाती । कुल मिलाकर पुस्तक न केवल ग्रामीण पाठकों के लिए बल्कि बाल पाठकों के लिए भी पठनीय है।

(*1857 का संग्राम, वि.स.वालिंबे (अनु.विजय प्रभाकर), नेशनल बल ट्रस्ट, इंडिया, प्र.सं.2000,)

शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

सूचना प्रौद्योगिकी व्याख्या एवं परिचय

भाषा अभिव्यक्ती का सशक्त माध्यम है। भाषा मानव जीवन का अभिन्न अंग है। संप्रेषण के द्वारा ही मनुष्य सूचनाओं का आदान प्रदान एवं उसे संग्रहीत करता है। सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक अथवा राजनीतिक कारणों से विभिन्न मानवी समूहाओं का आपस में संपर्क बन जाता है। गत शताब्दी में सूचना और संपर्क के क्षेत्र में अद्भुत प्रगति हुई है। इलेक्ट्रानिक माध्यम के फ़लस्वरूप विश्व का अधिकांश भाग जुड गया है। सूचना प्रौद्योगिकी क्रांती ने ज्ञान के द्वार खोल दिये है। बुद्धी एवं भाषा के मिलाप से सूचना प्रौद्योगिकी के सहारे आर्थिक संपन्नता की ओर भारत अग्रेसर हो रहा है। इलेक्ट्रानिक वाणिज्य के रूप में ई-कॉमर्स, इंटरनेट द्वारा डाक भेजना ई-मेल द्वारा संभव हुआ है। ऑनलाईन सरकारी कामकाज विषयक ई-प्रशासन, ई-बैंकींग द्वारा बैंक व्यवहार ऑनलाईन , शिक्षा सामग्री के लिए ई-एज्यूकेशन आदि माध्यम से सूचना प्रौद्योगिकी का विकास हो रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी के बहु आयामी उपयोग के कारण विकास के नये द्वार खुल रहे है। भारत में सूचना प्रौद्योगिकी का क्षेत्र तेजी से विकसित हो रहा है। इस क्षेत्र में विभिन्न प्रयागों का अनुसंधान करके विकास की गति को बढाया गया है। सूचना प्रौद्योगिकी में सूचना, आँकडें (डेटा ) तथा ज्ञान का आदान प्रदान मनुष्य जीवन के हर क्षेत्र में फ़ैल गया है। हमारी आर्थिक, राजनितिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, व्यावसायिक तथ अन्य बहुत से क्षेत्र में सूचना प्रौद्योगिकी का विकास दिखाई पड़ता है। इलेक्ट्रानिक तथा डिजीटल उपकरणों की सहायता से इस क्षेत्र में निरंतर प्रयोग हो रहे है। आर्थिक उदारतावाद के इस दौर के वैश्विक ग्राम (ग्लोबल व्हिलेज) की संकल्पना संचार प्रौद्योगिकी के कारण सफ़ल हुई है। इस नये युग में ई-कॉमर्स, ई-मेडीसीन, ई-एज्यूकेशन, ई-गवर्नंस, ई-बैंकींग, ई-शॉपिंग आदि इलेक्ट्रानिक माध्यमों का विकास हो रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी आज शक्ति एवं विकास का प्रतिक बनी है। कंप्यूटर युग के संचार साधनों में सूचना प्रौद्योगिकी के आगमन से हम सूचना समाज में प्रवेश कर रहे है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के इस अधीकतम देन के ज्ञान एवं इनका सार्थक उपयोग करते हुए, उनसे लाभान्वित होने की सभी को आवश्यकता है।

सूचना प्रौद्योगिकी व्याख्या: -

1. सूचना प्रौद्योगिकी से संबंधित संक्षिप्त विश्वकोश में: -
सूचना प्रौद्योगिकी को सूचना से संबद्ध माना गया है। इस प्रकार के विचार डिक्शनरी ऑफ़ कंप्यूटिंग में भी व्यक्त किए गए है। मैकमिलन डिक्शनरी ऑफ़ इनफ़ोर्मेशन टेक्नोलोजी में सूचना प्रौद्योगिकी को परिभाषित करते हुए यह विचार व्यक्त किया गया है कि कंप्यूटिंग और दूरसंचार के संमिश्रण पर आधारीत माईक्रो-इलेक्ट्रानिक्स द्वारा मौखिक, चित्रात्मक, मूलपाठ विषयक और संख्या संबंधी सूचना का अर्जन, संसाधन (प्रोसेसिंग) भंडारण और प्रसार है।

2. अमेरिका रिपोर्ट के अनुसार सूचना प्रौद्योगिकी को इन शब्दों मे परिभाषित किया गया है: -
सूचना प्रौद्योगिकी का अर्थ है, सूचना का एकत्रिकरण, भंडारण, प्रोसेसिंग, प्रसार और प्रयोग। यह केवल हार्डवेअर अथवा सॉफ़्टवेअर तक ही सीमित नहीं है। बल्की इस प्रौद्योगिकी के लिए मनुष्य की महता और उसके द्वारा निर्धारीत लक्ष्य को प्राप्त करना, इन विकल्पों के निर्माण में निहीत मुल्य, यह निर्णय लेने के लिए प्रयुक्त मानदंड है कि क्या मानव इस प्रौद्योगिकी को नियंत्रित कर रहा है। और इससे उसका ज्ञान संवर्धन रहा है।


3. युनेस्को के अनुसार सूचना प्रौद्योगिकी की परिभाषा: -
सूचना प्रौद्योगिकी, "वैज्ञानिक, प्रौद्योगिकीय और इंजीनियरिंग विषय है। और सूचना की प्रोसेसिंग, उनके अनुप्रयोग की प्रबंध तकनीकें है। कंप्यूटर और उनकी मानव तथा मशीन के साथ अंत:क्रिया एवं संबद्ध सामाजिक, आर्थिक तथा सांस्कृतिक विषय।'

4. डॉ जगदिश्वर चतुर्वेदी ने सूचना प्रौद्योगिकी के सूचना तकनिकी शब्द को परिभाषित करते हुए लिखा है: -
सूचना तकनिकी (प्रौद्योगिकी) का किसी भी उद्देश्य के लिए इस्तेमाल किया जाए वह वस्तुत: उपकरण तकनिक है। यह सुचनाओं को अमूर्त संसाधन के रूप में मथती है। यह 'हार्डवेअर और सॉफ़्टवेअर' दोनों पर आश्रित है। इसमें उन तत्वों का सवावेश भी है जो "हार्डवेअर और सॉफ़्टवेअर' से स्वतंत्र है।

5. सूचना प्रौद्योगिकी के अंतर्गत वे सब उपकरण एवं पद्धतियाँ सम्मिलित है, जो "सूचना' के संचालन में काम आते है।
यदि इसकी एक संक्षिप्त परिभाषा देनी हो, तो कहेंगे -
"सूचना प्रौद्योगिकी एक ऐसा अनुशासन है जिसमें सूचना का संचार अथवा आदान प्रदान त्वरित गति से दूरस्थ समाजों में, विभिन्न तरह के साधनों तथा संसाधनों के माध्यम से सफ़लता पुर्वक किया जाता है।'

6. सूचना प्रौद्योगिकी के संदर्भ में हम जब सूचना शब्द का प्रयोग करते है, तब यह एक तकनीकी पारीभाषीक शब्द होता है। वहाँ सूचना के संदर्भ मे "आँकडा (data) और "प्रज्ञा' "विवेक' "बुद्धिमत्ता' (intelligence) आदि शब्दों का भी प्रयोग मिलता है। प्रौद्योगिकी ज्ञान कि एक ऐसी शाखा है, जिसका सरोकार यांत्रिकीय कला अथवा प्रयोजन परक विज्ञान अथवा इन दोनों के समन्वित रूप से है।

रविवार, 17 जनवरी 2010

आदिवासियों के लिए गुँजते रहेंगे - नगाड़े की तरह बजते शब्द

अभी हाल ही में संथाली भाषा को संविधान में प्रमुख भारतीय भाषा का दर्जा प्राप्त हुआ है। भारतीय ज्ञानपीठ ने संथाली भाषा की सशक्त कवयित्रि निर्मला पुतुल का काव्य संग्रह ' नगाडे की तरह बजते शब्द' का प्रकाशन किया है। झारखंड के दुमका की निर्मला पुतुल संथाल आदिवासी की नई सुशिक्षित पीढी का प्रतिनिधित्व करती है।
उनकी कविताओं में आदिवासी समाज की पीडा, अत्याचार शोषण के खिलाफ बेचैन आवाज निकलती है।
इस संग्रह के अलावा उनका दिल्ली के रमणिका फाउंडेशन द्वारा 'अपने घर की तलाश में ' संग्रह प्रकाशित हुआ है।
निर्मला पुतुल की रचनाएँ भारत की प्रमुख पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रही है। साहित्य अकादमी नई दिल्ली ने उन्हें आदिवासी युवा कवियित्रि के रुप में पुरस्कृत किया है। यह पुरस्कार संथाली भाषा की सशक्त
रचनाकार होने के नाते उन्हें प्राप्त हुआ है। इनकी कविताओं का सशक्त हिंदी अनुवाद झारखंड के दुमका के हिंदी के सुपरिचित कवि श्री अशोक सिंह ने किया है।
हिंदी प्रदेश से संबंधित होने के कारण यह हिंदी साहित्य की नविन पहचान है। सुप्रसिध्द बांग्ला साहित्यकार महाश्वेता देवीजी ने उन्हें सम्मानित किया है।
हिमाचल प्रदेश के एक साहित्यिक संगोष्ठी में हिंदी समीक्षा के महापुरुष मा. श्री नामवर सिंह ने नवलेखकों कहां था कि निर्मला पुतुल की रचनाओं को पढो। आदिवासी होकर भी उनकी कविता में समाज के प्रति गंभीर चिंतन है।
हमारे समाज में दलित, हरिजन गांव के बाहर रहते है। उनकी पीडा दु:ख को उजागर किया जा रहा है।लेकिन गांव से दूर जंगल में रहनेवाले आदिवासियों की सुद लेने की जरुरत हमने कभी महसूस नहीं की ।
हमने अपने स्वार्थ के लिए पेड कटवाये, जंगल का घोर विनाश किया । मनुष्यता की अबोध निर्मल जीवन प्रणाली को नागर संस्कृति ने भ्रष्ट किया । उनकी कविताओं में निरीहता, भोलापन, निश्छलता, पवित्रता और निर्दोषता है।
' नगाडे़ की तरह बजते शब्द यह घोषित करता है कि जंगल में शहरी आदमी घुंस कर आया है। आदिवासियों में किसी घटना या सतर्कता के लिए विशिष्ट आवाज नगाडे से निकाली जाती है। इसी आवाज से संपर्क बनता है। आदिवासी सजग हो जाता है।
निर्मला कहती है -
' देखो अपनी बस्ती के सीमांत पर
जहाँ धराशायी हो रहे हैं पेड कुल्हाडियों के सामने असहाय
रोज नंगी होती बस्तियाँ ।
एक रोज माँगेगी तुमसे तुम्हारी खामोशी का जवाब।
सोचो- तुम्हारे पसीने से पुष्ट हुए दाने एक दिन लौटते है
तुम्हारा मुँह चिढाते हुए तुम्हारी ही बस्ती की दूकानों पर
कैसा लगता है तुम्हे ? जब तुम्हारी ही चीजें
तुम्हारी पहुँच से दूर होती दिखती है।
निर्मला का आरोप है कि वे लोग दबे पांव आते है आदिवासी संस्कृति में और उनके नृत्य की प्रशंसा करके हमारी हर कला को धरोहर बताते है। लेकिन वे सब सौदागर है जो जंगल की लकडी और आदिवासी कला संस्कृति नृत्य का कारोबार चलाते है।
किताबों से दूर रहकर जंगल पर निर्भर रहनेवाला आदिवासी आज रोजी रोटी के लिए बेहाल है। उनके बच्चे शहरों में, गाँव में दूकान पर मजदूरी करते है और उनकी लडकियाँ गाडी में लादकर कोलकोता, नेपाल, दिल्ली की बाजार में बिक्री के लिए खडी कर दी जाती है।
संताल परगाना में आदिवासी संस्कृति अब धीरे धीरे नष्ट होती जा रही है। अब आदिवासी के तीर-धनुष, मांदल, नगाडा , पंछी, बाँसुरी संग्राहलय में प्रदर्शन के लिए रखी जा रही है। अब उनके हजारों किस्से बच गए है जो आदिवासी संगोष्ठी में शहरी लोग बयान करते है।
कवयित्री निर्मला का विद्रोह अपनी कविता में लावा रस की तरह उबाल रहा है। आदिवासी का सवाल यह है कि हमारे बिस्तर पर हमारी बस्ती का बलात्कार करके हमारी जमीन पर खडे होकर
हमारी औकात पुछनेवाले आप शहरी, गांववाले कौन हैं ?
कवयित्री ने 'संताली लडकियों के बारे में कहा गया है ' इस कविता में आदिवासी नारी का सहज, अबोध सौंदर्य का मनोहारी रुप प्रकट किया है। आदिवासी नारी देह का वर्णन करनेवाले को वह कहती है
कि वह निश्यच ही हमारी जमात का खाया पीया आदमी होगा जो सच्चाई को एक धुंध में लपेटता निर्लज्ज सौदागर है।
कवयित्री अपने भोले आदिवासी समाज को सचेत करती है। अपनी जमीन, जंगल और संस्कृती को बचाये रखने का आवाहन करती है। ' चुडका सोरेन ' कविता में आदिवासी बंधु को पुछती है तुमको वे लोग प्रजातंत्र के दिवस पर दिल्ली के कार्यक्रम में प्रदर्शित करते है। लेकिन क्या आपको मालूम है प्रजातंत्र किस चिडिया का नाम हैं?
' जीवन रेखा' ट्रस्ट के माध्यम से संथाल आदिवासियों की समाज सेवा करते हुए कवियित्री का संपर्क अनेक आदिवासियों के जनजाति से हो रहा है। संथाल आदिवासी की इस सुशिक्षित कवयित्री ने समाज
शास्त्र का गंभीर अध्ययन किया है। आदिवासियों का आर्थिक एवं सामाजिक विकास करते समय उसने यह जाना है कि साहित्य की निर्मिति केवल स्वातं सुखाय नहीं है। अपने आदिवासी समाज पर चिंतन करते हुए उनकी कविताएँ मानवीय संवेदना, नारी पीडा और असवसरवादी मानसिकता पर प्रकाश डालती है।
संथाली भाषा की एक उमदा यूवा कवयित्री के पास हिंदी साहित्य की उंचाई छूने की ताकद है। उनकी कविताएँ सहज सरल और सीधे हदय को भिडनेवाली है। इन कविताओं में वर्तमान आदिवासी, समाज की संवेदना गंभीर चिंतन के साथ उभर कर आयी है। उनका भविष्य उज्जवल है।

अनाथ गरीबों के हितों के लिए कोई मशाल जलाओ

अहमदनगर शहर के सुपरिचित युवा कवि अनिल कुडिया 'नगरी' का 'मशाल उठाओ' यह प्रथम काव्य संग्रह अगस्त 2004 में प्रकाशित हुआ है। इस संग्रह का प्रकाशन सुप्रसिध्द कवि उर्मिल ने किया है। दिल्ली के कल्पतरु प्रकाशन ने आकर्षक मुखपृष्ठ एवं सुंदर कलेवर के साथ इसे छापा है।
अहमदनगर शहर के रक्षा लेखा कार्यालय में बहुत दिनों से कार्यरत अनिल कुडिया जी अब पुणे स्थित कार्यालय में हिंदी अधिकारी पद पर कार्यरत है। प्रयोजन मूलक हिंदी और साहित्य में स्नातकोत्तर इस कवि ने बी.एड कोर्स भी पूरा किया है। कार्यालय में अनुवाद और प्रशासकिय हिंदी कार्य करते हुए अनिल कुडिया हिंदी कविता के साथ अनेक वर्षों से जुडे रहे। अहमदनगर में यदाकदा आयोजित हर किसी हिंदी कवि सम्मेलन में भाग लेते रहे है । नौकरी और साहित्य प्रेम के अलावा इन्होंने समाजसेवा के क्षेत्र में भी अपना नाम रोशन किया है। वेश्याओं और उनके बच्चों के पूनर्वास के लिए समर्पित समाजसेवी संस्था 'स्नेहालय' के संस्थापक सदस्य होने के नाते आपने निराधार बालक और शोषित नारी के उत्थान में मानवीय संवेदना के साथ प्रामाणिक कार्य किया है। अपने जीवन में भोगे हुए यथार्थ को कविता के माध्यम से प्रकट किया है। अनिल कुडिया की कविताएँ सोफे पर बैठकर कल्पना की प्रतिभा से नहीं बल्कि जीवन के दाहक अनुभवों से गुजर कर लिखी हुई है।
छोटे शहर से अनिल महानगरी पुणे और मुंबई के साहित्यिक गुट में शामिल हुए । प्रतिभावान और सच्चे अनुभवों के बोल अनेकों को भा गए । कवि उर्मिल ने इस प्रथम काव्य संग्रह प्रकाशन में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
अनिल कुडिया को अभीष्ट पद प्राप्त होने का आशिर्वाद देते हुए कवि उर्मिल कहते है -
अहमदनगर शहर के यूवा कवि अनिल कुडिया 'नगरी' द्वारा लिखित 'मशाल उठाओ ' काव्य संग्रह की रचनाएँ मानवीय संवेदनाओ के साथ जुडी हुई है। आपकी कविता में सच्चाई है, धरती की खुशबू है और संवेदनाओं से भरी अनुभूति का आविर्भाव है। मान्यताओं को चुनौती देते हुए शोषण का प्रतिकार करनेवाले कवि अनिल ने अपनी सर्जन यात्रा में जाने-पहचाने संदर्भों के स्पर्श के साथ साथ चिंतन का आधार लेते हुए समीक्षकों के अनुत्तरित प्रश्नों का हल दिखाया है। एक ऐसा प्रस्थान दिखाया है कि आगे की लंबी यात्रा में बिछुडे हुए सभी को जुडने का मौका मिले।
इस संग्रह की भूमिका पुणे विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य एवं हिंदी विभाग अध्यक्ष डॉ. केशव प्रथमवीर जी ने लिखी है। उनके अनुसार दलित, पीडित, शोषित और उपेक्षित आम जनता को त्रस्त करनेवाले समाज के दरिंदों, धार्मिक ठेकेदारों, राजनेताओं तथा विभिन्न प्रकार से आर्थिक शोषण करनेवालो के रक्तरंजित दांतो को पहचान लेनेवाला यह कवि संघर्ष और जागृति की मशाल उठाकर कहता है-
रोज की चर्चाओं को विराम लगाओं
अपने बिलों से बाहर आओ
न्याय हथौडा हाथ में उठाओ
बिगडे सांडो को नकेल पहनाओं
जागो और जगाओ
मशाल उठाओ ।

आओ हम कविता संग्रह के अंदर झांक कर देखें ।
निराधार नाबालीग बच्चों को फूटपाथ पर बुट पॉलिश करते हुए या किसी होटल में टेबल साफ करते हुए बच्चों को देखकर कवि अपनी ' नाबालिग बुढे ' कविता में कहता है -
' जिंदगी के स्कूल में पढते है
जिंदा रहने के लिए जिंदगी से लडते हैं।
ये हालाती बुढे
एक पूरा परिवार चलाते है।
हर बाल दिवस पर इन बुढों को
बच्चा बनाने की कई योजनाएँ बनाई जाती है ।
जिनके लागु होने से पहले ही
नाबालिग बुढों की नई फौज पैदा हो जाती है।

कवि कहता है कि
' इस जालिम जिंदगी में
सिर की धूप और पेट की भूख ने
मेरे मन को दर दर भटकाया है।'
इस दर-दर भटकने की यात्रा में कवि ने दाहक संवेदनाहिन अनुभवों को झेला है। इस मानवीय विसंगतियों को चिंतन के सहारे शब्दों में ढाला है।
महापुरुषों के आदर्श हमारे सामने रखें जाते है। उनके आदर्श नि:संशय महान है। लेकिन नीजी प्रयासों के सिवाय कोई भी यात्रा निरर्थक हो जाती है। कवि विद्रोही बनकर अपनी आत्म शक्ति को ढुंढने की सलाह देता है।
संजीवनी कविता में वह कहता है -
कब तक कहां तक कोई
फूले गांधी अंबेडकर
हमें बैसाखियाँ थमाएंगें
और कंधे पर बैठकर
हम कैसे नदी पार कर पाएँगें।
हमारे देश की आबादी बाढ की तरह बढ रही है। अनेक योजनाएँ जनसंख्या की आबादी में बह जाती है। बिन बच्चे वाले अमीर परिवार के लिए विज्ञान ने टेस्ट टयूब बेबी का सफल अविष्कार किया है।
इस पर व्यंग्य कसते हुए कवि कहता है -
नारियों को प्रसव पीडा से बचाया है,
अब कोई दूसरों का पाप नहीं अपनाएंगा ।
हर बांझ के घर कांच का बच्चा आएगा
वाह रे विज्ञान तेरा दान
लाखों अनाथों के दु:ख से रहा तू अनजान !
इस कविता संग्रह में चार लाईनवाले चौके भी कवि ने लगाए है। जो एक सुविचार की तरह मार्गदर्शक है।
शहर की बनावटी जिंदगी को शब्दों में उजागर करते हुए कवि लिखता है -
' चेहरा संभालते है शहरी
संबंध संभालते है देहाती
अपनी अपनी जिम्मेदारियाँ है
शहर गांव में यही दूरियाँ हैं।
अनाथालय के बच्चों के प्रति कवि के मन में दया भाव है। जो बचपन भूख प्यास में गुजर जाता है उसकी जवानी क्या हो सकती है ?





इस प्रश्न का उत्तर खोजते हुए कवि कहता है -
कोई भी बच्चा अनाथालय में न पले
फूल अन्याय, अत्याचार, तिरस्कार
सहते हुए न खिलें
जिन बच्चों की माँ नहीं है।
उनके लिए हमें कुछ करना चाहिए !
धर्म के नाम पर हर कोई इंसानियत की हत्या करें और उसे धर्म के पालन करनेवाला मानकर धर्मप्रेमी माना जाए तो गुलशन उजाडने में कोई समय नहीं लगेगा । हमें इस धर्म की बंदूक को दूर करके भाईचारे की रोटी हमनिवाला लेकर इंसानियत को रोशन करना चाहिए।
बेतुका बवाल कविता में बेटी ने पुछे हुए बेतुके सवाल पर कवि अकल की बात कहता है -
बच्ची ने मुझसे पूछा -
सडकों पर सन्नाटा और अस्पताल में शोर क्यों है,
पापा सडकें तो कैजुअल लीव पर है बेटी
अस्पताल में रंगाई का काम चल रहा है।
हर सफेद चादर लाल की जा रही है।
ये होली के दीवानों की टोली
उसी की ओर जा रही है।
मत देख इन्हें वरना तुझे भी रंग देंगे।
आसुंओं से रंग नहीं धुलता है।
नन्हीं लाशें देखकर दिल बहुत जलता है
और बच्चों का तो मुआवजा भी
कम मिलता है।
कवि ने जीवन के दु:ख, वेदना को करीब से देखा है। घायल मन ही घायल की गति जानता है। खाली विद्रोह प्रकट करने से प्रश्नों के उत्तर मिलते नहीं । कुछ चिंतन और कुछ हल ढुंढ निकला जाए यही दृष्टी
लेकर कवि आगे बढ रहा है।

मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

राष्ट्रभाषा से राजभाषा की यात्रा में हिंदी

भारतीय संविधान सभा के तत्कालीन अध्यक्ष एवं स्वतंत्र भारत के प्रथम महामहिम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी ने लोकसभा में राज भाषा हिंदी पर हुई चर्चा के उपरांत दिनांक 14.9.1949 को सभा को संबोधित किया। राज भाषा हिंदी को स्वीकार करने पर उन्होंने हिंदीतर सदस्यों का विशेष आभार व्यक्त किया क्योंकि राष्ट्रीय एकता एवं स्वाभिमान के लिए किसी एक भारतीय भाषा को राज भाषा के रुप में स्वीकार करना आवश्यक था। इस भाषण में उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया है कि राज भाषा हिंदी को बहुमत से स्वीकार किया गया है। वर्तमान राजनीति में हिंदी को राष्ट्र भाषा न मानने की होड़ लगी है जो देश की एकता के लिए घातक है। हमें भारतीय भाषा भगिनी परिवार में एकता एवं समन्वय रखना चाहिए क्योंकि इस राष्ट्र की संस्कृति एक है। जिस तरह एक देश, एक ध्वज,एक राष्ट्र गीत एवं एक राष्ट्र भाषा की संकल्प ना को विश्व में स्वीकार किया जाता है उसी तरह हमारे देश में राष्ट्रीय स्वाभिमान के प्रतीकों का सम्मान करना चाहिए जो अनिवार्य भी और हितकारी भी होगा। भारतीय संविधान के कलम ३०१ के अनुसार हिंदी राज भाषा है जो देवनागरी लिपि में लिखी जाती है। हिंदी के विकास के लिए जो विशेष निर्देश जारी किए गए है उसके अनुसार हिंदी भाषा किसी एक प्रांत की विशेष भाषा नहीं है बल्कि उसका स्वरूप संपूर्ण राष्ट्र के सभी भाषाओं के प्रचलित शब्दों के आधार पर किया जाना सुनिश्चित किया गया है। संस्कृत को मूल आधार बना दिया गया है और हिंदी में विश्व के सभी भाषाओं के शब्दों को स्वीकार करने में कोई परहेज नहीं है जब वे शब्द देश-विदेश में प्रचलित है।
इस पुस्तक के लेखक डॉ.विमलेश कांति वर्मा ने अपनी भूमिका में यह स्पष्ट कर दिया है कि १९४९ से १९५० तक के दस्तावेज़ के आधार पर लिखी है। भारत की स्वाधीनता के बाद से संविधान बनने और पारित होने तक के चार वर्षों में देश के महान नेताओं के बीच हिंदी को संवैधानिक मान्यता दिए जाने के संबंध में हुई बहस का विवरण इस पुस्तक में उपलब्ध है।

हिंदी भाषा के विवाद में तत्कालीन भारतीय संविधान सभा के अध्यक्ष एवं स्वतंत्र भारत के प्रथम महामहिम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी उस भाषण को फिर एक बार सभी ने पढना चाहिए। संबंधित भाषण भारत सरकार के प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित राष्ट्र भाषा से राज भाषा तक पुस्तक से साभार प्रस्तुत है।

“ अब आज की कार्यवाही समाप्त होती है, किंतु सदन को स्थगित करने से पूर्व मैं बधाई के रुप में कुछ शब्द कहना चाहता हूँ । मेरे विचार में हमने अपने संविधान में एक अध्याय स्वीकार किया है जिसका देश के निर्माण पर बहुत प्रभाव पडेगा। हमारे इतिहास में अब तक कभी भी एक भाषा को शासन और प्रशासन की भाषा के रुप में मान्यता नहीं मिली थी। हमारा धार्मिक साहित्य और प्रकाशन संस्कृत में सन् निहित था। निस्संदेह उसका समस्त देश में
अध्ययन किया जाता था, किंतु वह भाषा भी कभी समूचे देश के प्रशासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयुक्त होती थी। आज पहली ही बार ऐसा संविधान बना है जब कि हमने अपने संविधान में एक भाषा लिखी है जो संघ के प्रशासन की भाषा होगी और उस भाषा का विकास समय की परिस्थितियों के अनुसार ही करना होगा ।
मैं हिंदी का या किसी अन्य भाषा का विद्वान होने का दावा नहीं करता । मेरा यह भी दावा नहीं है कि किसी भाषा में मेरा कुछ अंश दान है, किंतु सामान्य व्यक्ति में हमारा उस भाषा का क्या रुप होगा जिसे हमने आज संघ के प्रशासन की भाषा स्वीकार की है। हिंदी में विगत में कई-कई बार परिवर्तन हुए हैं और आज उसकी कई शैलियाँ हैं, पहले हमारा बहुत-सा साहित्य ब्रजभाषा में लिखा गया था। अब हिंदी में खड़ी बोली का प्रचलन है। मेरे विचार में देश की अन्य भाषाओं के संपर्क से उसका और भी विकास होगा। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि हिंदी देश की अन्य भाषाओं से अच्छी-अच्छी बातें ग्रहण करेगी तो उससे उन्नति ही होगी, अवनति नहीं होगी।
हमने अब देश का राजनैतिक एकीकरण कर लिया है। अब हम एक दूसरा जोड़ लगा रहे हैं जिससे हम सब एक सिरे से दूसरे सिरे तक एक हो जाएंगे। मुझे आशा है कि सब सदस्य संतोष की भावना लेकर घर जाएंगे और जो मतदान में हार भी गए हैं, वे भी इस पर बुरा नहीं मानेंगे तथा उस कार्य में सहायता देंगे जो संविधान के कारण संघ को भाषा के विषय में अब करना पड़ेगा ।
मैं दक्षिण भारत के विषय में एक शब्द कहना चाहता हूँ । 1917 में जब महात्मा गांधी चंपारण में थे और मुझे उनके साथ कार्य करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था तब उन्होंने दक्षिण में हिंदी प्रचार का कार्य आरंभ करने का विचार किया और उनके कहने पर स्वामी सत्य देव और गांधी जी के प्रिय पुत्र देव दास गांधी ने वहां जाकर यह कार्य आरंभ किया। बाद में 1918 में हिंदी साहित्य सम्मेलन के इंदौर अधिवेशन में इस प्रचार कार्य को सम्मेलन का मुख्य कार्य
स्वीकार किया गया और वहां कार्य चलता रहा। मेरा सौभाग्य है कि मैं गत 32 वर्षो में इस कार्य से संबंध रहा हूँ, यद्यपि मैं इसे घनिष्ट संबंध का दावा नहीं कर सकता । मैं दक्षिण में एक सिरे से दूसरे सिरे को गया और मेरे हृदय में बहुत प्रसन्नता हुई कि दक्षिण के लोगों ने भाषा के संबंध में महात्मा गांधी के अनुरोध के अनुसार कैसा अच्छा कार्य किया है। मैं जानता हूँ कि उन्हें कितनी ही कठिनाइयों का सामना करना पडा किंतु उनमें इस मामले में जो जोश था वह बहुत सराहनीय था। मैंने कई बार पारितोषिक-वितरण भी किया है और सदस्यों को यह सुन कर मनोरंजन होगा कि मैंने एक ही समय पर दो पीढ़ियों को पारितोषिक दिए हैं, शायद तीन को ही दिए हों-अर्थात दादा, पिता और पुत्र हिंदी पढ कर, परीक्षा पास करके एक ही वर्ष पारितोषिकों तथा प्रमाण पत्रों के लिए आए थे। यह कार्य चलता रहा है और दक्षिण के लोगों ने इसे अपनाया है। आज मैं कह नहीं सकता कि वे इस हिंदी कार्य के लिए कितने लाख व्यय कर रहे हैं। इसका अर्थ यह है कि इस भाषा को दक्षिण के बहुत से लोगों ने अखिल भारतीय भाषा मान लिया है और इसमें उन्होंने जिस जोश का प्रदर्शन किया है उसके लिए उत्तर भारतीयों को उन्हें बधाई देनी चाहिए, मान्यता देनी चाहिए और धन्यवाद देना चाहिए।
यदि आज उन्होंने किसी विशेष बात पर हठ किया है तो हमें याद रखना चाहिए कि आखिर यदि हिंदी को उन्हें स्वीकार करना है तो वे ही करेंगे, उनकी ओर से हम तो नहीं करेंगे, और आखिर यह क्या बात है जिस पर इतना वाद-विवाद हो गया है? मैं आश्चर्य कर रहा था कि हमें छोटे-से मामले पर इतनी बहस करने की, इतना समय बर्बाद करने की क्या आवश्यकता है? आखिर अंक हैं क्या ? दस ही तो हैं। इन दस में, मुझे याद पड़ता है कि तीन तो ऐसे हैं जो अंग्रेजी में और हिंदी में एक से हैं। 2,3 और 0 । मेरे खयाल में चार और हैं जो रुप में एक से हैं किंतु उनसे अलग-अलग कार्य निकलते हैं। उदाहरण के लिए हिंदी का 4 अंग्रेजी के 8 से बहुत मिलता-जुलता है, यद्यपि एक 4 के लिए आता है और दूसरा 8 के लिए । अंग्रेजी का 6 हिंदी के 7 से बहुत मिलता है, यद्यपि उन दोनों के भिन्न-भिन्न अर्थ है। हिंदी का 9 जिस रुप में अब लिखा जाता है, मराठी से लिया गया है और अंग्रेजी के 9 से बहुत मिलता है। अब केवल दो-तीन अंक बच गए जिनके दोनों प्रकार के अंकों में भिन्न-भिन्न रुप हैं और भिन्न-भिन्न अर्थ हैं। अत: यह मुद्रणालय की सुविधा या असुविधा का प्रश्न नहीं हैं जैसा कि कुछ सदस्यों ने कहा है। मेरे विचार में मुद्रणालय की दृष्टि से हिंदी और अंग्रेजी अंकों में कोई अंतर नहीं है।
किंतु हमें अपने मित्रों की भावनाओं का आदर करना है जो उसे चाहते हैं, और मैं अपने सब हिंदी मित्रों से कहूँगा कि वे इसे उस भावना से स्वीकार करें, इसलिए स्वीकार करें कि हम उनसे हिंदी भाषा और देवनागरी लिपि स्वीकार करवाना चाहते हैं और मुझे प्रसन्नता है कि इस सदन ने अत्यधिक बहुमत से इस सुझाव को स्वीकार कर लिया है। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि आखिर यह बहुत बडी रियायत नहीं है। हम उनसे हिंदी स्वीकार करवाना चाहते थे और
उन्होंने स्वीकार कर लिया, और हम उनसे देवनागरी लिपि को स्वीकार करवाना चाहते थे, वह भी उन्होंने स्वीकार कर ली। वे हमसे भिन्न प्रकार के अंक स्वीकार करवाना चाहते थे, उन्हें स्वीकार करने में कठिनाई क्यो होनी चाहिए? इस पर मैं छोटा-सा दृष्टांत देता हूँ जो मनोरंजक होगा । हम चाहते हैं कि कुछ मित्र हमें निमंत्रण दें। वे निमंत्रण दे देते हैं। वे कहते हैं, आप आकर हमारे घर में ठहर सकते हैं, उसके लिए आपका स्वागत है। किंतु जब आप हमारे घर आएं तो कृपया अंग्रेजी चलन के जूते पहनिए, भारतीय चप्पल मत पहनिए जैसा कि आप अपने घर में पहनते हैं। उस निमंत्रण को केवल इसी आधार पर ठुकराना मेरे लिए बुध्दिमता नहीं होगी। मैं चप्पल को नहीं छोड़ना चाहता। मैं अंग्रेजी जूते पहन लूँगा और निमंत्रण को स्वीकार कर लूँगा और इसी सहिष्णुता की भावना से राष्ट्रीय समस्याएं हल हो सकती हैं।
हमारे संविधान में बहुत से विवाद उठ खड़े हुए हैं और बहुत से प्रश्न उठे हैं जिन पर गंभीर मतभेद थे किंतु हमने किसी न किसी प्रकार उनका निपटारा कर लिया। यह सबसे बडी खाई थी जिससे हम एक दूसरे से अलग हो सकते थे। हमें यह कल्पना करनी चाहिए कि यदि दक्षिण हिंदी भाषा और देवनागरी लिपि को स्वीकार नहीं करता, तब क्या होता। स्विटज़रलैंड जैसे छोटे-से, नन्हे से देश में तीन भाषाएं हैं जो संविधान में मान्य हैं और सब कुछ काम उन तीनों भाषाओं में होता है। क्या हम समझते हैं कि हम केंद्रीय प्रशसकीय प्रयोजनों के लिए उन भाषाओं को रखने की सोचते जो भारत में प्रचलित हैं तो क्या हम सब प्रांतों के साथ रख सकते थे, सभी में एकता करा सकते थे? प्रत्येक पृष्ठ को शायद पंद्रह-बीस भाषाओं में मुद्रित करना पड़ता।
यह केवल व्यय का प्रश्न नहीं है। यह मानसिक दशा का भी प्रश्न है जिसका हमारे समस्त जीवन पर प्रभाव पड़ेगा । हम केंद्र में जिस भाषा का प्रयोग करेंगे, उससे हम एक दूसरे के निकटतम आते जाएंगे। आखिर अंग्रेजी से हम निकटतम आए हैं क्योंकि यह एक भाषा थी। अंग्रेजी के स्थान पर हमने एक भारतीय भाषा को अपनाया है, इससे अवश्यमेव हमारे संबंध घनिष्टतर होंगे, विशेषत: इसलिए कि हमारी परंपरा एक ही हैं, हमारी संस्कृति एक ही है और हमारी सभ्यता में सब बातें एक ही हैं। अतएव यदि हम इस सूत्र को स्वीकार नहीं करते तो परिणाम यह होता कि इस देश में बहुत-सी भाषाओं का प्रयोग होता या वे प्रांत पृथक हो जाते जो बाध्य होकर किसी भाषा विशेष को स्वीकार करना नहीं चाहते थे। हमने यथासंभव बुध्दिमानी का कार्य किया है। मुझे हर्ष है, मुझे प्रसन्नता है और मुझे आशा है कि भावी सन्तति इसके लिए हमारी सराहना करेगी ।“

पीठापुरम यात्रा

 आंध्र प्रदेश के पीठापुरम यात्रा के दौरान कुछ धार्मिक स्थलों का सहपरिवार भ्रमण किया। पीठापुरम श्रीपाद वल्लभ पादुका मंदिर परिसर में महाराष्ट्...